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રર૦ समान सूत्र साधुवोंके लीये हैं. और यहांपर विशेष सूत्र साधु आपसमें एक दुसरेके पांवादि दाबे-चांपे.
भावार्थ-विशेष कारण विना स्वाध्याय ध्यान न करते हुवे दबाने-चंपानेवाला साधु प्रायश्चित्तका भागी होता है. अगर किसी प्रकारका कारण हो ता एक साधु दूसरे साधुकी वैयावच्च करनेसे महा निर्जरा होती है. ५६ सूत्र मिलानेसे १५७ सूत्र हुवे.
(१५८), उपधि प्रतिलेखनके अन्तमें लघुनीत, वडीनीत परिठणेकी भूमिकाको प्रतिलेखन न करे. ३
भावार्थ-रात्रि समय परिठनेका प्रयोजन होनेपर अगर दिनको न देखी भूमिकापर पैसाब आदि परिठनेसे अनेक त्रस स्थावर प्राणीयोंकी घात होती है.
(१५९) भूमिकाके भिन्न भिन्न तीन स्थान प्रतिलेखन न करे. ३ पहेले रात्रिमें, मध्य रात्रिमें, अन्त रात्रिमें परिठनेके लीये.
(१६०), स्वल्प भूमिकापर टटी पैसाब परठे. ३ स्वल्प भूमिका होनेसे जल्दीसे सुक नहीं सके. उसमें जीवोत्पत्ति होती है. वास्ते विशाल भूमिपर परठे.
(१६१ ) ,, अविधिसे परठे. ३
(१६२), टटी पैसाब जाकर साफ न करे, न करावे, न करते हुवेको अच्छा समझे. उसे प्रोयश्चित्त होता है.
(१६३ ) टटी पैसाब कर पाणीसे साफ न करके काष्ठ, कं. करा, अंगुली तथा शीला आदिसे साफ करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है. अर्थात् मलकी शुद्धि जल हीसे होती है. इसी वास्ते ही जैन मुनि पाणीमें चुना