________________
૨૨૪
भोजन करनेवाले तथा नित्य विना कारण एक स्थानपर निवास करनेवालोंका समझना.
( ३८-३९ ) एवं दो अलापक 'संसत्था ' संवेगीके पास संवेगी और पासत्थावोंके पास पासत्था बननेवालोंका समझना. ( ४० ) " कचे पाणीसे ' संसक्त ' पाणीसे भींजे हुवे ऐसे हाथोंसे भाजनमें से चाटुडी ( कुरची) आदिसे आहार पाणी ग्र हन करे. ३ स्निग्ध ( पूरा का न हो) सचित्त रजसे, सचित्त मट्टी से, ओसके पाणीसे, नीमकसे, हरताल से, मणसील (वोडल), पीली मट्टी, गेरुसे, खडीसे, हींगलुसे, अंजनसे, (सचित्त मट्टीका) लोसे, कुकस, तत्कालीन आटासे, कन्दसे, मूलसे, अद्रकसे, पुष्पसे, कोष्ठकादि - एवं २१ पदार्थ सचित्त, जीव सहित हो, उसे हाथ खरडा हो, तथा संघट्टा होते हुवे आहार पाणी ग्रहन करे. ३ वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होता है. इसी माफिक २१ पदार्थोंसे भाजन खरडा हुवा हो उस भाजनसे आहार पाणी ग्रहन करे. ३ एवं ८१
""
( ८२ ) ग्रामरक्षक पटेलादिको अपने वश करे, अर्चन करे, अच्छा करे, अर्थी बने. एवं इसी उद्देशावे प्रारंभ में राजाके च्यार सूत्र कहा था. इसी माफिक समझना एवं देशके रक्षकों का च्यार सूत्र एवं सीमाके रक्षकोंका च्यार सूत्र एवं राज्य रक्षकों का प्यार सूत्र एवं सर्व रक्षकोंका च्यार सूत्र. कुल २० सूत्र. भावना पूर्ववत्. १०१
(१०२),, अन्योन्य आपस में एक साधु दुसरे साधुका पग दबावे चांपे एवं यावत् एक दुसरे साधुके ग्रामानुग्राम विहार करते हुवे के शिरपर छत्र धारण करे, करावे. जो तीसरा उद्देश में कहा है, इसी माफिक यहां भी कहना. परन्तु वहां पर