________________
२१९
(६४) लोद्रवादि सुगन्धी द्रव्यका लेपन करे. (६५) शीतल पाणी, गरम पाणीसे धोवे.
(६६) काजलादि रंगसे रंगे, अर्थात् शोभाके लीये सुरमादिका अंजन करे. ३
(६७) ,, अपने भँवरों के बालोंको काटे, समारे. ३
(६८) एवं पछवाडे तथा छातीके बालोंको काटे, समारे सुन्दरता बनावे.३
(६९) ,, अपने आंखोंका मैल, कानोंका मैल, दान्तोंका मैल, नखोंका मैल निकाले, विशुद्ध करे. ३
भावार्थ-अपनी शुश्रूषा निमित्त उक्त कार्य करनेकी मना है कारण-इसीसे प्रमादकी वृद्धि होती है, और स्वाध्यायादिधर्म कृत्यमें विघ्न होता है.
(७०),, अपने शरीरसे परसेवा, मैल, जमा हुवा पसीना मैलको निकाले, विशुद्ध करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. ३ भावना पूर्ववत..
(७१ ) ,, ग्रामानुग्राम विहार करते समय शीतोष्ण निवारणार्थे शिरपर छत्र धारण करे. ३
यहांतक शुश्रूषा संबन्धी ५६ बोल हुवे है. .. (७२) ., सणका दोरा, कपासका दोरा, उनका दोरा, अर्कतूलका दोरा, वोड वनस्पतिके दोरोंसे वशीकरण करे. ३
(७३),, गृहस्थोंके घरमें, घरके द्वारमें, घरके प्रतिद्वारमें, घरकी अन्दरके द्वारमें, घरको पोलमें, घरके चोकमें, घरके अन्य स्थानों में आप लधुनीत (पैसाब ) वडीनीत (टटी) परठे, परठावे, परिठतेको अच्छा समझे.