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२०३ अग्नि शस्त्रादिसे कुचेष्टा करनेसे कुचेष्टा करनेवालोंको बडा भारी नुकशान होता है. वास्ते मुनि उक्त कार्य स्वयं करे, अन्यके पास करावे, अन्य करते हुवेको आप अच्छा समझ अनुमोदन करे. अ. र्थात् अन्य उक्त कार्य करते हुवेको सहायता करे.
(१०) कोइ भी साधु साध्वी सचित्त गन्ध गुलाब, केवडादि पुष्पोंकी सुगन्ध स्वयं लेवे, लीरावे, लेतेको अनुमोदन करे.
(११) ,, सचित्त प्रतिबद्ध सुगन्ध ले, लीरावे, लेतेको अनुमोदे.
(१२) , पाणीवाला रहस्ता तथा कीचडवाला रहस्तापर अन्यतीर्थीयों के पास अन्यतीर्थीयोंके गृहस्थों के पास काष्ठ पत्थरादि रखावे, तथा उंचा चढनेके लीये रस्सा सीडी आदि रखावे. (३)
(१३) ,, अन्य तीर्थीयोंसे तथा अन्य के गृहस्थोंसे पाणी निकालनेकी नाली तथा खाइ गटर करावे. (३)
(१४) ,, अन्य तीर्थीयोंसे, अन्य के गृहस्थोसे छीका, छीकाके ढक आदिक करावे. (३)
(१५), अन्य० अन्य० के गृहस्थोंसे सूतकी दोरी, उ. नका कंदोरा नाडी-रसी, तथा चिलमिली ( शयन तथा भोजन करते समय जीवरक्षा निमित्त रखी जाती है. ) करे. (३)
(१६),, अन्य० अन्य के गृहस्थोंसे सुइ (सूचि) घ. सावे-तीक्षण करावे. (३)
(१७) ,, एवं कतरणी. ( १८ ) नखछेदणी. (१९) कानसोधणी.
भावार्थ-बारहसे उन्नीसवे सूत्र में अन्य तीर्थीयों तथा अन्य तीर्थीयोंके गृहस्थोंसे कार्य करानेकी मना है. कारण-उन्होंसे कार्य करानेसे परिचय बडता है. वह असंयति है, अयतनासे कार्य करे. असंयतियोंके सर्व योग सावध है.