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समका विषम करावे, नये पात्रा तैयार करावे, तथा पात्रों संबंधी स्वल्प भी कार्य गृहस्थोंसे करावे. ३
भावार्थ - गृहस्थोंका योग सावध है. अयतनासे करे. मातेतगी रखना पडे, उसकी निष्पत् पैसा दीलाना पडे. इत्यादि दोषोंका संभव है.
( ४१ ),, दांडा (कान परिमाण) लठ्ठी ( शरीर परिमाण ), चीपटी लकडी तथा वांसकी खापटी, कर्दमादि उतारनेके लीये और वांसकी सुइ रजोहरणकी दशी पोनेके लीये – उसको अन्यतीर्थीयों तथा गृहस्थोंके पास समरावे, अच्छी करावे, विषमकी सम करावे इत्यादि. भावना पूर्ववत्.
(४२),, पात्राको एक थेगला ( कारी ) लगावे. ३ भावार्थ - विगर फूटे शोभाके निमित्त तथा बहुत दिन चलने के लोभसे थेगलो (कारी ) लगावे. ३
(४३),, पात्रा के फूट जानेपर भी तीन थेगले से अधिक लगावे. ( ४४ ) वह भी विना विधि, अर्थात् अशोभनीय, जो अन्य लोग देख हीलना करे, ऐसा लगावे. ३
(४५) पात्राको अविधिसे बांधे, अर्थात् इधर उधर शिथिल बन्धन लगावे.
( ४६ ) विना कारण एक भी बन्धन से बांधे. ३
( ४७ ) कारण होनेपर भी तीन बन्धनों से अधिक बन्धन लगाये.
( ४८ ) अगर कोइ आवश्यक्ता होनेपर अधिक बन्धनवाला पात्रा भी ग्रहन करनेका अवसर हुवा तो भी उसे देढ मास से अधिक रखे. ३