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(२०), बिगर कारण सुइ, (२१) कतरणी, (२२) नख छेदणी, (२३) कानसोधणीकी याचना करे. (३)
भावार्थ-गृहस्थोंके वहां जानेका कोइभी कारन न होनेपर भी सुइ, कतरणीका नामसे गृहस्थोंके वहां जाके सुइ, कतरणी आदिकी याचना करे.
(२४), अविधिसे सुइ, (२५) कतरणी, (२६ ) नखछेदणी. (२६) कानसोधणी याचे. (३)
भावार्थ-सुइ आदि याचना करते समय ऐसा कहना चाहिये कि-हम सुइ ले जाते है, वह कार्य हो जानेपर वापिस ला देंगे, अगर ऐसा न कहे तो अविधि याचना कहते है. तथा सुइ आदि लेना हो, तो गृहस्थ जमीन पर रख दे, उसे आज्ञासे उठा लेना. परन्तु हाथोहाथ लेना इसे भी अविधि कहते है, कारणलेते रखते कहां भी लग जावे, तो साधुवोंका नाम सामेल होता है.
(२८ ) ,, अपने अकेलेके नामसे सुइ याचके लावे. अ. पना कार्य होने के बाद दुसरा साधु मागनेपर उसको देवे. (२९) एवं कतरणी. (३०) नखछेदणी. (३१) कानसोधणी. ___ भावार्थ-गृहस्थोंको ऐसा कहे कि मैं मेरे कपडे सीनेके लीये सुइ आदि ले जाता हुं, और फिर दुसरोंको देनेसे सत्यव. चनका लोप होता है. दुसरे साधु मांगनेपर न देनेसे उस साधुके दिलमें रंज होता है. वास्ते उपयोगवाला साधु किसीका भी नाम खोलके नहीं लावे. अगर लावे तो सर्व साधु समुदायके लीये लावे.
(३२), कार्य होनेसे कोई भी वस्तु लाना और कार्य हो जानेसे वह वस्तु वापिस भी दी जावे उसे शास्त्रकारोंने 'पडि