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हारिये कहते है. अर्थात् उसे लरचीणी भी कहते है. वस्त्र सीने के नामसे सुइकी याचना करो, उस सुइसे पात्र सीवे, इसी माफिक.
( ३३ ) वस्त्र छेदने के नामसे कतरणी लाके पात्र छेदे. (३४) नख छेदने के नामसे नखछेदणी लाके कांटा नीकाले. (३५) कानका मेल निकालने के नामसे कानसोधणी लाके दांतोका मेल निकाले.
भावार्थ - एक कार्यका नाम खोलके कोई भी वस्तु नही लाना चाहिये. कारण - अपने तो एक ही कार्य हो, परन्तु उसी वस्तुसे दुसरे साधुवको अन्य कार्य हो, अगर वह साधु दुसरे साधुवोंको न देवे, तो भी ठीक नहीं. और देवे तो अपनी प्रतिज्ञा का भंग होता है वास्ते पेस्तर याचना ही ठीकसर करना चाहिये. अर्थात् साधु ऐसा कहे कि हमको इस वस्तुका खप है. अगर गृहस्थ पूछे कि - हे मुनि ! आप इस वस्तुको क्या करोगे ? तब मुनि कहे कि हमारे जिस कार्य में जरुरत होगी, उसमें काम लेंगे. ( ३६ ),, सुइ वापिस देते बखत अविधि से देवे. ( ३७ ) कतरणी अविधि से देवे.
(३८) एवं नखछेदणी अविधि से देवे.
( ३९ ) कानसोधणी अविधि से देवे.
भावार्थ- सुइ आदि देते समय गृहस्थोंको हाथोहाथ देवे. तथा इधर उधर फेंके चला जावे, उसे अविधि कहते है. कारण- गृहस्थोंके हाथोहाथ देनेमें कभी हाथमें लग जाये तो साधुका नाम होता है. इधर उधर फेंक देनेसे कोइ पक्षी आदि भक्षण करने से जीवघात होता है.
(४०), तुंबाका पात्र, काष्ठका पात्र, मट्टीका पात्र जो अन्य-तीर्थीयों तथा गृहस्थोंसे घसावे, पुंछावे, विषमका सम करावे,