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कल्पै. वास्ते आचार्यश्रीको भी चाहिये कि अपने शिष्य शिष्यणीयोको योग्यता पूर्वक पेस्तर आचारांगसूत्र और निशिथसूत्रकी वाचना दे. और मुनियोंको भी प्रथम इसका ही अभ्यास करना चाहिये. यह मेरी नम्रता पूर्वक विनंतो है.
संकेत(१) जहांपर ३ तीनका अंक रखा जावेगा, उसे--यह कार्य स्वयं करे नहीं, अन्य साधुवोंसे करावे नहीं, अन्य कोइ साधु करते हो उसे अच्छा समझे नहीं-उसको सहायता देवे नहीं.
(२) जहांपर केवल मुनिशब्द या साधुशब्द रखा हो वहां साधु और साध्वीयों दोनों समझना चाहिये. जो साधुके साथ घटना होती है, वह साधु शब्दके साथ जोड देना और साध्वीयोंके साथ घटना होती हो, वह साध्वीशब्दके साथ जोड देना.
(३) लघु मासिक, गुरु मासिक, लघुचातुर्मासिक, गुरु चातुर्मासिक तथा मासिक, दो मासिक, तीन मासिक, चतुर्मासिक, पंच मासिक और छे मासिक-इस प्रायश्चित्तवालोंकी क्या क्या प्रायश्चित्त देना, उसके बदलेमें आलोचना सुनके प्रायश्चित्त देनेवाले गीतार्थ-बहुश्रुतजी महाराज पर ही आधार रखा जाता है. कारण-आलोचना करनेवाले किस भावोंसे दोष सेवन कीया है, और किस भावोंसे आलोचना करी है, कितना शारीरिक सामर्थ्य है, वह द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखके ही शरीर तथा संयमका निर्वाह करके ही प्रायश्चित देते है. इस विषयमें वीसवां उदेशामें कुछ खुलासा कीया गया है. अस्तु.