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यन सूत्रार्थ कंठस्थ करलेने के बादमें वडी दीक्षा दी जावे, उसका काल बतलाया है.
(२१) साधु साध्वीयोंको क्षुल्लक-छोटा लडका, लडकी या आठ वर्षसे कम उम्मरवालाकों दीक्षा देना, वडीदीक्षा देना, शिक्षा देना, साथमें भोजन करना, सामेल रहना नहीं कल्पै.
भावार्थ-जबतक वह बालक दीक्षाका स्वरुपको भी नहीं नाने, तो फिर उसे दीक्षा दे अपने ज्ञानादिमें व्याघात करने में क्या फायदा है ? अगर कोइ आगम व्यवहारी हो, वह भविष्यका लाभ जाने तो वह एसेको दीक्षा दे भी सक्ता है।
(२२) साधु साध्वीयोंको आठ वर्षसे अधिक उम्मरवाला वैरागीको दीक्षा देना कल्पै, यावत् उसके सामेल रहना.
(२३) साधु साध्वीयोंको, जो बालक साधु साध्वी जिसकी कक्षामें बाल ( रोम ) नहीं आया हो, ऐसोंको आचारांग और निशीथ सूत्र पढाना नहीं कल्पै.
(२४) साधु साध्वीयोंको जिस साधु साध्वीकी काखमें रोम (बाल ) आया हो, विचारवान् हो, उसे आचारांग सूत्र और निशीथसूत्र पढाना कल्पै.
( २५ ) तीन वर्षोंके दीक्षित साधुवोंको आचारांग और निशीथ सूत्र पढाना कल्पै. निशीथसूत्रका फरमान है कि जो आगम पढने के योग्य हो, धीर, गंभीर, आगम रहस्य समझने में शक्तिमान हो उसे आगमोंका ज्ञान देना चाहिये.
( २६ ) च्यार वर्षों के दीक्षित साधुवोंको सूयगडांग सूत्रकी वाचना देना कल्पै.
( २७ ) पांच वर्षों के दिक्षित साधुवोंको दश कल्प और व्यवहारसूत्रकी वाचना देना कल्पे.