________________
कृष्णपक्षकी प्रतिपदाको चौदह दात, दूजको तेरह दात, यावत् चतुर्दशीको एक दात आहार, और एक दात पाणी लेना कल्प, तथा अमावस्याको चौविहार उपवास करना कल्पै. और सूत्रोंमें इसका कल्पमार्ग बतलाया है; इसी माफिक पालन करनेसे यावत् आज्ञाका आराधक हो सक्ता है.
वन मध्यम चन्द्र प्रतिमा स्वीकार करनेवाले मुनियोंको यावत् अनुकूल प्रतिकूल परीसह सहन करे. इस प्रतिमाधारी मुनि, कृष्णपक्षको प्रतिपदाको पंद्रह दात आहार और पंद्रह दात पाणी, यावत् अमावस्याको एक दात आहार, एक दात पाणी लेना कल्पै. शुक्लपक्षकी प्रतिपदाको दोय दात आहार दीय दात पाणी लेना कल्पै. यावत् शुक्लपक्षकी चतुर्दशीको पंद्रह दात आहार, पंद्रह दात पाणी, और पुर्णिमाको चौविहार उपवास करना कल्पै यावत् सम्यक् प्रकारसे पालन करनेसे आज्ञाका आराधक होता है. यह दोनों प्रतिमामें आहारका जैसे जैसे अभिग्रह कर भिक्षा निमित्त जाते है, वैसा वैसाही आहार मिलनेसे आहार करते है. अगर ऐसा आहार न मिले तो, उस रोज उपवासही करते है.
(२) पांच प्रकारके व्यवहार है
[१] आगमव्यवहार. [२] सूत्रव्यवहार. [३] आज्ञाव्यवहार. [४] धारणाव्यवहार. [५] जीतव्यवहार.
(१) आगमव्यवहार-जैसे अरिहंत, केवली, मनःपर्यव. ज्ञानी, अवधिज्ञानी, जातिस्मरण ज्ञानी, चौदह पूर्वधर, दश पूर्वधर, श्रुतकेवली-यह सब आगम व्यवहारी है. इन्होंके लीये कल्प-कायदा नहीं है. कारण-अतिशय ज्ञानवाले भूत, भविष्य, वर्तमानमें लाभालाभका कारण जाने, वैसी प्रवृत्ति करे.