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दीक्षा देवे.यावत् उसको साध्वीयों मिलनेपर सप्रत कर देवे. यह सूत्र हमेशांके लीये नहीं है, किन्तु ऐसा कोई विशेष कारण होनेपर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके जानकारोंकी अपेक्षाका है.
(९) इसी माफिक साध्वी अपने लीये साधुको दीक्षा न देवे.
(१०) परन्तु किसी माताके साथ पुत्र दीक्षाका आग्रह करता हो, तो साध्वीयों साधुके लीये दीक्षा देकर आचार्यादि मिलनेपर साधुको सुप्रत कर देवे. भावना एवंवत्.
(११) साल्वीयोंको विकट देश विहार करना नहीं कल्पै. कारण-जहांपर बहुतसे तस्कर लोग, अनार्यलोग हो, वहांपर वस्त्रहरण, व्रतभंगादिक अनेक दोषोंका संभव है..
(१२) साधुवोंको विकट देशमेभी लाभालाभका कारण जान विहार करना कल्पै. ... (१३) साधुवोंको आपस में क्रोधादि हुवा हो, उससे एक पक्षवाले साधु विकट देश में विहार कर गये हो, तो दुसरा पक्षवाले साधुषोंको स्वस्थान रहके खमतखामणा करना नहीं कल्पै. उन्होंको वहां विकट देशमें जाके अपना अपराध क्षमाना चाहिये.
(१४) साध्वीयोंको कल्पै, अपने स्थान रहके खमतखामणा कर लेना. कारण-वह विकट देशमें जा नहीं सक्ती है. भावना पूर्ववत्.
(१५ साधु साम्बीयाको अस्वाध्यायकी अन्दर स्वाव्याय करना नहीं कल्पै. अर्थात् आगमोंमें ३२ अस्वाध्याय तथा अन्य भी अस्वाध्याय कहा है. उन्होंकी अन्दर स्वाध्याय करना नहीं कल्पे.
(१६) साधु साध्वीयोंको स्वाध्याय कालमें स्वाभ्याय करना कल्पै. - (१७) साधु साध्वीयों को अपने लीये अस्वाध्याय की अन्दर स्वाध्याय करना नहीं कल्पै.