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१७० (५) पहले दाल उतरी हो तो दाल लेना कल्पै, शेष नहीं.. (६) पहले चावल दाल दोनों उतरा हो तो दोनों कल्पै. (७) चावल दाल दोनों पीछेसे उतरा होतो दोनों न कल्पै. (८) मुनि जानेके पहले जो उतरा हो, वह लेना कल्पै. (९) मुनि जाने के बाद खुलासे जो उतरा होवह लेना न कल्पै.
(१०) आचार्योपाध्यायका गच्छकी अन्दर पांच अतिशय होते है.
(१) स्थंडिल, गौचरी आदि जाके पीछे उपाश्रयको अन्दर आते समय. उपाश्रयकी अन्दर आके पगको प्रमार्जन करे.
(२) उपाश्रयकी अन्दर लघु वडीनीतिसे निवृत्त हो सके.
( ३ ) आप समर्थ होनेपर भी अन्य साधुवोंकी वैयावञ्च इच्छा हो तो करे, इच्छा हो तो न भी करे.
(४) उपाश्रयकी अन्दर एक दोय रात्रि एकान्त ठेर सके.
(५) उपाश्रयकी बहार अर्थात् प्रामादिसे बहार जंगलमें एक दो रात्रि एकान्तमें ठेर सके. ___ यह पांच कार्य सामान्य साधु नहीं कर सके, परन्तु आचार्य करे, तो आज्ञाका अतिक्रम न होवे.
(११) गणविच्छेदक गच्छकी अन्दर दोय अतिशय होते है. (१) उपाश्रयकी अन्दर एकान्त एक दो रात्रि रह सके. (२) उपाश्रयकी बहार एक दो रात्रि एकान्तमें रह सके.
भावार्थ-आचार्य तथा गणविच्छेदकोंके आधारसे शासन रहा हुवा है. उन्होंके पास विद्यादिका प्रयोग अवश्य होना चाहिये. कभी शासनका कार्य हो तो अपनी आत्मलब्धिसे शासनकी प्रभावना कर सके.