________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ११ ॥
है । ताकूं कहिये, जो, सर्वज्ञका ज्ञापक प्रमाण है। सूक्ष्म जे परमाणु तथा धर्मादिक, अंतरित जे रामरावणादिक, दूर जे मेरुपर्वतादिक इन पदार्थनिका उपदेश सत्यार्थ है सो इनका प्रत्यक्ष देखनहारा सर्वज्ञ है तिसपूर्वक है । ए इंद्रियगोचर नांही । इनका चिन्हभी प्रत्यक्ष नांही । बहुरि असर्वज्ञका उपदेशपूर्वक नांही । साक्षात् देखे है ताके कहे सत्यार्थ है । जैसे नदी, द्वीप, देश, कोई साक्षात् देखे ताके कहै सत्यार्थ मानिये तैसैंही सर्वपदार्थ सर्वज्ञके कहे सत्यार्थ हैं । कोई कहे धर्म अधर्मकाभी निर्णय करना, सकलवस्तूका साक्षात् ज्ञाताताई कहा प्रयोजन है ? ताकूं कहिये है । सर्वज्ञविना धर्म अधर्मका भी निर्णय होता नांही । धर्म अधर्मका फल स्वर्ग मोक्ष नरक संसार कहिये है सो धर्म अधर्मका फलकै अरु धर्म अधर्मके साक्षात्संबंध देख्या होय ताहीका कह्या सत्यार्थ होय । सो सर्वका ज्ञाताविना यह संबंध दिखै नांही । बहुरि मीमांसककूं पूछिये, तुम सर्वज्ञका जनावनहारा ज्ञायक प्रमाणका निषेध करौ हौ ; सो सर्व प्राणीनि संबंधी करौ हौ कि तुमसंबंधी करौ हौ? जो सर्व प्राणीनि संबंधी निषेध करौ हौ तौ सर्वक्षेत्रकालके प्राणी तुमनें देखिलीये, तब तुमही सर्वज्ञ भये । सर्वज्ञका अभाव काहेकूं कहो । बहुरि तुमही संबंधी कहौ हौ तौ युक्त नांही । तुमकूं पूछे है, समुद्र जलते घडा है ? जो न बतावोगे तौ सर्वज्ञका अभाव मति कहौ ॥
For Private and Personal Use Only