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____ अर्थ—जो ज्ञायकभाव है, सो अप्रमत्त नाहीं है बहुरि प्रमत्त भी नाहीं है। ऐसें याकू शुद्ध 卐 - कहे हैं। बहुरि जो ज्ञायकभाक्करि जाण्या, सो, सो ही है। अन्य दूसरा कोई नाहीं है।
टीका--जो ज्ञायक एक भाव है, सो आपहीतें सिद्ध है, काहकरि भया नाहीं है। तिसभाव- हरि तो अनादिसत्तारूप है। बहुरि कबहू याका विनाश नाहीं है, ताते अनंत है। नित्य उद्योत
रूप है, तातें क्षणिक नाहीं है। ऐसा स्पष्ट प्रकाशमान ज्योति है। सो संसारको अवस्थामैं - म अनादिबंधपर्यायकी निरूपणाकरि कर्मरूप पुद्गलद्रव्यकरि सहित क्षीरनीरकीज्यों एकपणा होते भी है .. द्रव्यका स्वभावकी निरूपणाकरि देखिये, तब कठिन है मिटना जाका ऐसा जो कषायसमूहका + उदय, ताका विचित्रपणाकार प्रवर्ते जे पुण्यपापके उपजावनहार समस्त अनेकरूप शुभाशुभभाव, + । तिनिके स्वभावकरि नाहीं परिणमे है। ज्ञायकमावते जडभावरूप नाहीं होय है। याते प्रमत्त भी
" नाहीं है, अर अप्रमत्त भी नाहीं है। यह ही समस्त अन्यद्रव्यनिके भावनिकार भिन्नपणाकरि ॥ 4 सेया हुवा शुद्ध ऐसा कहिये है। बहुरि याकै ज्ञेयाकार होनेते ज्ञायकपणा प्रसिद्ध होय है। " जैसे दाहनेयोग्य दाह्य जो इंधन, तिस आकार अग्नि होय है, तातें अग्नीकू दहन कहिये है, तथापि
अग्नि तौ अग्नि ही है, दाहनेयोग्य वस्तु इंधन अग्नि नाहीं है। तैलें ज्ञेयरूप आप नाहीं है, आप .
तौ ज्ञायक ही है । ऐसें तिस शेयकरि किया हुवा भी याकै अशुद्धपणा नाहीं है। जातें ज्ञेयाकार । 卐 अवस्थाविर्षे भी जो ज्ञायकभावकरि जाण्या जो अपना ज्ञायकपणा, सो ही स्वरूप प्रकाशनेकी .. जाननेकी अवस्थामैं भी ज्ञायक ही है, शेयरूप न भया, जातें अभेदविवक्षातें कर्ता तो आप
ज्ञायक, अर कर्म, आपकू जाण्या, सोए दोऊ एक आपही है, अन्य नाहीं है। जैसे दीपक घट-卐 - पटादिककू प्रकाशे है, तिनिके प्रकाशनेकी अवस्थामै भी दीपक ही है, सो ही अपनी ज्योतीरूप " लोय, ताकै प्रकाशनेकी अवस्थामें भी दीपक ही है, किछु अन्य नाही, तैसें जानना।
भावार्थ-अशुद्धपणा परद्रव्यके संयोग” आवे है। तहां जो मूल द्रव्य तौ अन्यद्रव्यरूप होय नाहीं । अर किट परद्रव्यके निमित्तते अवस्था मलिन होय, तहां द्रव्यदृष्टिकरि तौ द्रव्य जो है।
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