________________
दात्मकस्वसंवेदनजन्मा च यः कश्चनापि ममात्मनः स्त्रो विभवस्तेन समस्तेनापि यमेकत्वविभक्तमात्मानं दर्शयेहमिति बद्ध-" र व्यक्सायोस्मि । किंतु यदि दर्शयेयं तदा स्वयमेव स्वानुमवप्रत्यक्षंण परीक्ष्य प्रमाणीकर्तव्यं । यदि तु स्खलेयं तदा सुन ' छलग्रहणजागरुकैर्भवितम्यं ॥ ५ ॥ कोऽसौ शुद्ध आत्मेति चेत्
अर्थ-सो आत्मा एकत्वविभक्त है, ताहि मैं अपने आत्माके विभवकरि दिखाऊँ हूं। जै में है - दिखाऊँ तो प्रमाण करना । अर जो कहूं चूक, तो छल नाहीं, ग्रहण करना। " टीका-आचार्य कहे हैं, जो कछु मेरा आत्माका निजविभव है, तिस समस्तकरि यह मैं एकक खविभक्त आत्मा है ताही दिखा है, ऐसा उद्या बांया है। कैसा है मेरा आत्माका निजविभव ? " इस लोकविर्षे प्रगट समस्तक्स्तुका प्रकाश करनहारा अर स्यात्पदकरि चिह्नित जो शब्दब्रह्म ।
कहिये अरहंतका परमागम ताका उपासनाकरि है जन्म जाका । इहां 'स्यात्' ऐसा पदका तो __ कथंचित् अर्थ है, कोई प्रकार कहना । बहुरि सामान्यधर्मकरि जे वचनगोचर धर्म हैं, तिनिका 5 सर्वका नाम पावे है। अर जे केई विशेषधर्म वचनके अगोचर हैं तिनिका अनुमान करावै, ऐसें ॥ .. सर्ववस्तुका प्रकाशक है। यातें सर्वव्यापी कहिये, याहीत अरहंतके परमागमकू शब्दब्रह्म कहिये, ..
तिसकी उत्पत्ति, उपासनाकरि ज्ञानविभव उपज्या है। बहुरि कैसा है ? समस्त जे विपक्ष कहिये, । - अन्यवादीनिकरि ग्रही सर्वथैकांतरूप नयपक्ष, तिनिका क्षोद कहिये निराकरण तिसविर्षे समर्थ " जो अतिनिस्तुष निर्बाध युक्ति ताका अवलंबनकरि है जन्म जाका । बहुरि कैसा है ? निर्मल-" प्र विज्ञानधन जो आत्मा ताविष अंतनिमम जे परमगुरु सर्वज्ञदेव, अपरगुरु गणधरादिकतें लगाय॥
हमारे गुरुपर्यंत, तिनिकरि प्रसादरूप कीया दीया जो शुद्धात्मतत्त्वका अनुशासन अनुग्रहकरि .. 5 उपदेश, तथा पूर्वाचार्यनिके अनुसार उपदेश ताकरि है जन्म जाका । वहुरि कैसा है ? निरंतर " ... झरता आस्वादमै आवता अर सुंदर जो आनंद ताकरि मिल्या हुवा जो प्रचुरसंवेदनस्वरूप जो th स्वसंवेदन, ताकरि है जन्म जाका । ऐसा जो क्यों त्यौं मेरा ज्ञानका विभव है, ता समस्तकरि । कर दिखाऊँ है। सो जो यह दिखाऊँ तो स्वयमेव अपने अनुभवप्रत्यक्षकरि परीक्षा करि प्रमाण ॥
$ 55 5 5 55 55 5 5 5