Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे 'सामान्यविशेषात्मा' इत्याद्याह
सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः ॥ १॥ तस्य प्रतिपादितप्रकारप्रमाणस्यार्थो विषय :। किविशिष्टः ? सामान्य विशेषात्मा । कुत एतत् ?
पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेन अर्थक्रियोपपत्तेश्च ॥२॥
पृष्ठों की है। यह विभाग बम्बई धार्मिक परीक्षालय की शास्त्री परीक्षा के कोर्स के अनुसार किया है, शास्त्री परीक्षा के द्वितीय खण्ड में न्याय विषय में प्रमेयकमलमार्तण्ड का २३० पृष्ठों का अंश आता है और शास्त्री परीक्षा तृतीय में आगे के २३६ पृष्ठों का अंश है। अब शेष चतुर्थ परिच्छेद से अंतिम षष्ठ परिच्छेद तक के मूल ग्रन्थ का अनुवाद प्रारम्भ होता है
"स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्" सूत्र में प्रमाण का अक्षुण्ण लक्षण पहले बताया था उसमें अनेक मतों की अपेक्षा विस्तृत विवेचन पूर्व भागों में कर लिया है, अब यहां प्रश्न होता है कि वह प्रमाण निर्विषयी है अथवा सविषयी है ? यदि निविषयी-विषय रहित है [कुछ भी नहीं जानता है, तो वह प्रमाण कैसे कहलायेगा ? अर्थात नहीं कहला सकता, जैसे कि केशोण्डुकादि ज्ञान प्रमाण नहीं कहलाते हैं । यदि प्रमाण सविषयी है तो उसका क्या विषय है ? इस प्रकार के प्रश्न को लेकर प्रमाण के विषय सम्बन्धी विवाद को दूर करते हुए प्राचार्य सूत्रावतार करते हैं
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सामान्य विशेषात्मा तदर्थो विषयः ।।१।।
सूत्रार्थ-सामान्य और विशेष धर्मों से युक्त ऐसा जो पदार्थ है वही प्रमाण विषय है, प्रमाण के द्वारा जानने योग्य पदार्थ है। पूर्वोक्त कहे हुवे प्रमाण का सामान्य विशेषात्मक पदार्थ ही विषय है यह बात किस प्रमाण से सिद्ध है ? ऐसी आशंका को दूर करते हुए अग्रिम सूत्र कहते हैं
अनुवृत्त व्यावृत्त प्रत्ययगोचरत्वात् “पूर्वोत्तराकार परिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तेश्च ।।२॥"
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