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| विषय-सूची ।
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सप्तम खण्ड कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या
क्र. सं.
शीर्षक
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कर्मबन्ध का अस्तित्व २. दुःख-परम्परा का मूलः कर्मबन्ध ३. कर्मबन्ध का विशद स्वरूप ४. कर्मबन्ध : क्यों, कब और कैसे?
कर्मबन्ध का मूल स्रोत : अध्यवसाय
कर्मबन्ध के बीज : राग और द्वेष ७. कर्मबन्ध का सर्वाधिक प्रबल कारण : मिथ्यात्य ८. कर्मबन्ध के मुख्य कारण : एक अनुचिन्तन .
बन्ध के संक्षेप-दृष्टि से दो कारण : योग और कषाय १०. कर्मबन्ध की मुख्य चार दशाएँ
कर्मबन्ध के प्रकार और स्वरूप १२. कर्मबन्ध के अंगभूत चार रूप १३. प्रदेशबन्ध : स्वरूप, कार्य और कारण १४. प्रकृतिबन्ध : मूल प्रकृतियाँ और स्वरूप १५. मूल प्रकृतिबन्ध : स्वभाव, स्वरूप और कारण १६. उत्तरप्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-१ १७. उत्तरप्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-२ १८. उत्तरप्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-३
उत्तरप्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-४ २०. उत्तरप्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-५ २१. घाती और अघाती कर्म-प्रकृतियों का बन्ध २२. पाप और पुण्य कर्म-प्रकृतियों का बन्ध २३. रसबन्ध बनाम अनुभागबन्ध : स्वरूप और परिणाम २४. स्थितिबन्ध : स्वरूप कार्य और परिपएम
परिशिष्टः प्रयुक्त ग्रन्थ-सूची
१५५ १७२ १८५ १९७ २०९ २४७ २७९
२९३
१९.
३३५ ३५७ ४00 ४१७
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