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जिन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन था । इस्लामी शासकों की कट्टरता एवं धर्मान्धता के फलस्वरूप इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ रहा था, यहाँ तक कि विदेशी आक्रमणकारियों (विशेषत: अहमदशाह अब्दाली) द्वारा भी हिन्दू धर्म पर कुठाराघात किया जा रहा था । ' हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता छिनती-सी जा रही थी । आगे चलकर ईसाई धर्म भी भारत की प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना रंग जमाने लग गया था । यह सब होते हुए भी हिन्दू धर्म अजेय रहा ।
सम्राट् शाहजहाँ अपने शासनकाल के पूर्वार्द्ध में हिन्दू धर्म के प्रति निरंकुश और अनुदार रहा । उसने बनारस में छिहत्तर मंदिरों को निर्ममतापूर्वक ध्वस्त करा दिया । कालान्तर में उसकी धर्मान्धता समाप्त हो गयी और वह धर्म के प्रति सहिष्णु बन गया ।
उसके उपरान्त औरंगजेब का शासन आया । वह क्रूर और अत्याचारी शासक था । उसने भारत में इस्लाम धर्म की प्रतिष्ठा के निमित्त हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया, उन पर जजिया कर लगाया, उन्हें भाँति-भाँति के पाशविक अत्याचारों का शिकार बनाया और उनके धार्मिक प्रतिष्ठानों को भूलु ठित किया । इस हेतु उसने हिन्दुओं को प्रलोभन भी दिये । 'मुसलमान हो जाओ और कानूनगो बन जाओ' – यह उस समय एक कहावत सी बन गयी थी ।
औरंगजेब के बाद के अधिकांश मुगल सम्राट् धर्म के प्रति असहिष्णु ही बने रहे ; यद्यपि उनमें औरंगजेब जैसी धार्मिक कट्टरता नहीं थी, किन्तु उनके शासनकाल में भी हिन्दू धर्म सुरक्षित न था ।
देखिए - गोविन्द सखाराम देसाई : मराठों का नवीन इतिहास, पृष्ठ ५०४-५०५ ।
देखिए - डॉ० रामप्रसाद त्रिपाठी : मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन, पृष्ठ ३६० ।
३. देखिए - सत्यकेतु विद्यालंकार : भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास,
पृष्ठ ५२७ ।
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