Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पृष्ठ
शुद्ध
७१०
७२० ७२३ ७२५
होने के पश्चात्
करता हुमा समय
समयों रूप से दाम
रूप मे, दारु भजनीय है। दर्शन
भजनीय है, ऐसा मागम में कहा है।
दर्शनसम्यम्हष्टियों की इच्छा राशि है। सम्यग्दृष्टि हैं। को पल्य
से पल्य करता है वह
करता है, प्रतः वह अतएव
मथबा करते हैं । जहाँ
करते हैं। इसी तरह मारणांतिक समु
दधात में जहाँ समुद्घात श्रेणी
समुद्धात में श्रेणि एक जीव की अपेक्षा
नाना जीवों की अपेक्षा प्रनाहारक सबै
काम होते हैं। एक जीव को अपेक्षा मनात्मभूत हेतु अन्तरंग निमित्त है। मनात्मभूत हेतु है तथा ब्ययोगनिमित्तक
भावयोग तथा बीर्यान्सराय ज्ञानावरण वर्णनावरण के क्षय, क्षयोपशम से उत्पन्न मात्मशाक्ति भात्मभूत अन्तरंग
निर्मित है। असंख्यात........
संख्यात अनुभय पिकलेन्द्रियों
अनुमय वचन बिकलेन्द्रियों सम्यक्त्व
सम्यक्त्ती -पंचेन्द्रिय जीवों
पंचेन्द्रिय तक के जीवों मानने में उनसे अनेकान्त दोष हो ऐसा एकान्त नहीं है ; अर्थात पनेकान्त प्राता है।
जाता; क्योंकि सामायिक व छेदोपस्थापना में विवक्षा-भेद से ही भेद है, बास्तव में नहीं।
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३७.
२६
७४४
२२.२३
७४
२२
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