Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पाक्ति
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५.२६
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५४.६
ज्ञाता पदाथों तिर्यक तथा प्रतिज्ञानियों प्रमाण अवधिज्ञान इनसे अधिक विमंगशानी मिथ्याष्टि प्रोच मिथ्याप्टि इसके उदय छेदों पुर्व संयम का कारण असत्य छुरी, विष नामक तीसरे गुरगवत अवधि, सामायिक कषाय का काव असंख्याता चक्षुदर्शन परमार्थ अचक्षुदर्शन की उत्पति कषायों में केवल मसूम कुसूम प्रनवात व तनुवात पर संख्यात मानत, प्रारगत ) स्वर्गा होती है ।। ५३४-३५॥
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ज्ञात पर्यायों तियंच मतिज्ञानियों प्रमाण तथा प्रवधिज्ञान इनसे व अयोगी से अधिक विमंगशानी भी मिथ्याष्टि प्रोच यानी सकल मिथ्याष्टि अप्रत्यास्थानावरण के उदय भेदों पूर्व में संयम का कारण, ऐसे असत्य छुरी, धेनू, विष नामक मुरावत अवधि में सामायिक कषाय का, काय भसंख्यात प्रचक्षुदर्शन परमार्थप्रवक्षज्ञान की उत्पत्ति कषायों से, केवल कुसुम व तनुवात पर एक बार संख्यात ) स्वगः होती है । भवनत्रिक अपर्याप्तों के
___ अशुभत्रिक होती है ।।५३४-३५।। असंख्याल भाग का भाग अब प्रशुभ लेश्या वाली सम्पूर्ण जीवराथि
को तीनों के सामूहिक वर्ग से के भागाहार के गुपकाचरित (यक्षों के विवरण
स्थान); स्पर्श करते हैं । इसलिए प्रतरांगृल गुणित
जगप्रेरिण का संख्यातवाँ भाग प्रमाण गुणकार स्थापित करना चाहिए। सर्वत्र
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१० १६-२०
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६००
२
असंख्यातवें भाग प्रशुभ लेश्या वाली जीवराझिको
सामूहिक वर्ग मे को भागाहार के गुह्यक चरित (यक्षों के विचरण
स्थान) ये समानार्थक हैं। स्पर्श करते हैं। सर्वत्र
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