Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
पंक्ति
पृष्ठ ३१७
२७
३२६
११-१२
३७०
३८०
३८९
२२
अग्रज वर्ग होता है। . .........
वगंणा होती है। अथवा परमाणु
प्रतः परमाणु केवल यौदारिक शरीर की
प्रौदारिक शरीर की केवल पुद्गलों का उत्कर्ष
पुदगलों का संक्लेश से उत्कर्ष एकेन्द्रियों में त्रसों
एकन्द्रियों से त्रसों एक समय........उदय समय है उस तीसरे........
है उसे तीसरे तुल्य प्रसंस्यातगुणे
तुल्य होकर प्रसंध्यातगुरणे सूत, प्रेय
सूत या स्वत, प्रेय जल के द्वारा
जल के मिचनों द्वारा हैं ।।२६५।। हैं । शिला, पृथ्वी, धूलि तथा जल ये चारों स्थान पृथक्-२
प्रसंग्यात लोक प्रमारण होते हुए भी क्रमशः असंख्यात
गुणहीन-२ हैं ॥२६॥ परिवर्तन मात्र विशेष
परिवर्तनमात्र क्रोध के परिवर्तनवार विशेष पदार्थों में की
पदार्थों की प्रप्राय
अबाय अब इस प्रकार........दिये ही हैं। इस प्रकार सभी (११) विकल्पों का
स्पष्टीकरण किया गया। वस्तु का उपरिम
वस्तु का, उपरिम ६११...... ६१२ वें
६०११.... .. ६०१२ बें अनन्त माग जाकर
अनन्त भाग बुद्धियाँ जाकर प्रमाण वृद्धियों में में
प्रमाण अनंतभाग दृद्धियों में से अपरिवर्तित
अपवर्तित के नीचे संख्यात
के नीचे काण्डक प्रमाण संख्यात [(४x ४५)
[(१४४५) जघन्य स्थ
जघन्य स्थान में प्राभृतप्राभृत जितने
प्राभृतप्राभृत के जितने बयासी
तिरासी श्रुक्षजान एक
श्रुतज्ञान में एक एक अक्षर होता है
एक भंग होता है से एक करने
से एक कम करने यथा--प्रकार के
यथा-प्रकार के
१३-१४
२५
४०३
Wa man.
४२६ ४२६
४३१
४३२
४३८
"210
२६.२७
४३६ ४४३
१४६३८ १९५३ श्रुतज्ञान एककम प्राप्त होने उनके प्रवृत्ति
६. ४ १६३० श्रुतज्ञान और तदाबरण कर्म के एक कम प्राप्त होने पर उनके प्रति प्रवृत्ति
[३०]