Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
पृष्ठ
पंक्ति
प्रद
शुख
२५
३०
१२३
१४५ १४७ १५१ १५१ ११२
कृष्टियों को
कृष्टियों की को द्विचरम फाली हो
की द्विचरमकालि नक ले का उपाय पंक्ति तीन के अन्त में जोडिए- प्रसंख्यासगुणा है। उममें अनिवत्ति० उपशामक का गूणरिण
गुणकार असंख्यात गुणा है। उससे सूक्ष्मसाम्पराय का
गुरगश्रेरिंग गुणकार असख्यातगुणा है। बारा के निनि:संग
बाण के समान विनिःसंग शेष छह प्रकृतियाँ
शेष कर्म प्रकृतियाँ सूक्ष्म तेजकायिक बादर बनस्पति- सूक्ष्म जकायिक बादर वायुकायिक-मूक्ष्म कायिक
वायुकाविक बादरवनस्पतिकाधिक उपमुक्त के
उपमुक्त आहार के होती हैं, किन्तु मूलाचार
होती हैं। मुलाचार उपपाद जन्म में एकेन्द्रिय
उपपाद जन्म में तथा एकेन्द्रिय स्थित सबसे
स्थित जीवों के सबसे वाली है। इस
बाली है यानी भ्रमर यो चौड़ा है । इस स्वस्थान सूक्ष्म
स्वस्थान में सूक्ष्म घन्यज
जघन्य १४-१५ अवगाहना करके
अवगाहना को ग्रहण करके २० मे प्रावली के
से इसको प्राबली के सूक्ष्म पृश्वीकायिक की
सुभम पृथ्वीकायिक पर्याप्तक की शादर वनस्पतिकायिक शरीर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर नीचगोत्र रूप
नीच गोत्र के में भेद किया
का प्रभाव किया पहले स्थितिकाण्डक
पहले ; स्थितिकाण्डक भवति' 'संयन
भवति'; अर्थात् पर विधि बाधक होती है
इस नियम के अनुसार 'संगत परिणामों
प्रागों १३:१४, १५; १७ इन्द्रियों
नोट-इन्द्रियों को जगह इन्द्रिय-प्रागों पढ़ें। उसमें मनोबलरूप
उससे उत्पन्न हुए मनोबल रूप २२-२३ भाषावगंगा... शक्ति
"भावगंगा .. शक्ति" मथुन संज्ञा
परिग्रह सजा जान पड़ता है।
ज्ञानरूप पड़ता है। ये इन्द्रियाँ
वे इन्द्रियाँ (उपयोग रूप भावेन्द्रिया) नारकियों के उत्पन्न
नारकिमों में जीवों के उत्पन्न पंक्ति १३ के अन्त में जोड़
सूक्ष्म साम्पराय संयम का जघन्य अंतर एक समय है। क्योंकि मक्ष्म साम्परायिक संयतों के बिना समय जगत में देखा जाता
xcx
Murhwor
१६६
१७६
१८१
१८१ १८७
~
१६१ १६६
[२८ ]