Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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अशुद्ध
पृष्ठ
पंक्ति
४४५
साधु की कथा........ लास्य पद हैं। पांच भूतों के भंगविधिविणेष, तत्त्व
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कारणभूत है-क्षेत्राननुगामी वर्ग सानी में क्योंकि सूक्ष्म अवगाहना से ऊपर
*
साधु को कथा लाख पौर ५ पद हैं। बार भूतों के भंगविधिबिशेष, पृच्छाविधि, पृच्छाविधि
विशेष, तत्व करागभूत है-वह तीन प्रकार का है—क्षेत्राननुगामी वर्गानों के संत्र य में क्योंकि वह सूक्ष्म अवगाहना का मान
(प्रमाण) है । परन्तु इससे ऊपर जाते हैं उनको वह जानता है। उन उतना पल्योपम प्रसंख्यातमाग पाता है, यानी ही प्राचार्य जघन्य ध्रुवहार, वर्गणा गुणकार ५ वर्गार संबंधी विकल्पों को लाने हेतु एक रूप का परमाणुप्रचय कुष्ठ कम एक दिवस की बात जानता
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जाते हैं, उन उसने इस पल्योपम प्रसंख्यातवें भाग हो जघन्य ध्रुवहार वर्गण। गुणकार व वर्ग सम्बन्धी एक रूप का कुछ परमाणप्रचय कुछ एक दिवस है।'
२३-२४
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Ac
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है, सामान्यवानी संख्यातव मात्र जघन्य द्रव्य में .. होता
है ।।४१४॥
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है, कालसामान्यवाची संख्यातवें भाग भाव उतने परमावषि के भेद हैं। इनमें से उत्कृष्ट चरम भेद में द्रव्यहार (अर्थात्
ध्रुवहार) प्रमाण होता है ।। ४१४।। अव्यवहित काल कम इससे इसी प्रकार काल इससे बहुत से उसका संख्यातवा भाग संबंधी उत्कृष्ट क्षेत्र द्वारा प्रथम पृथ्वी रहित अवधि या समस्त . पावली के असंख्यातवें भाग
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प्रत्यवहित काय कम । इससे इस प्रकार काल बहुत से असंख्यातवा भाग संबधीक्षेत्र द्वारा पृथ्वी सहित अवधि युक्त समस्त पावली के भाग
५०६
५०५
५.
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