Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१
अशुद्ध
शुद्ध
है । उत्कृष्ट प्रसर छह मास है, क्योंकि अपकरण-प्रारोहण का उत्कृष्ट अन्तर छह मास ही है। छह मास बाद कोई-नकोई सूक्ष्म साम्पराय होता ही है ।
तीसरे में कापोत व नील, चौथे में नील, पाँचवें में नील व कृष्ण लेश्या
तीसरे चौथे नरक में नील ब
कृष्ण लेश्या
५०० धनुष
नरकगति नारकी
६१९७०८४६६६६६४१६२....
प्रथमवर्गमूल अ. . को
द्वितीय वर्गमूल x (तृतीय
इन्द्रियों के उक्त
पुद्गल ऋव्य का... परिमन है ।
व्यय सहित
आप के बिना
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक हीन्द्रिय... पंचेन्द्रिय
युक्त बनता है ।। १८२ ।। शंका- प्रत्येक वनस्पति में. ....अकान्तिक है ।
नहीं हुई है, जल
मूलादिक, जो श्रागम में प्रतिष्ठित
प्रत्येक
हेतु (भावकलंक) यह तीनों राशियां लोक
जलकायिक जीव
पर्याप्त प्रावली
संपूर्ण बादर पर्याप्त
क्योंकि सम्बन्ध
प्रभाव
गुण से वह
श्रोर भुज्यमान
जिन्होंने पूर्व
[ २९ ]
७] योजन ३ कोस
नरकगति से नारकी
६१६७०८४६६६८ १६४१६२... प्रथमवर्गमूल से ज. श्रे. को द्वितीय वर्गमूल (तृतीय इन्द्रियों के द्वारा उक्त
विशिष्ट संस्थान, महत्व तथा प्रकृष्ट वाशी आदि पुद्गल द्रव्य का परिण मन है ।
व्ययरूप से अधिक
आप के बिना
सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक
त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय युक्त; पृथ्वी श्रादि में बनता है ।। १८२ ।। शंका प्रत्येक वनस्पति में सूक्ष्मता विशिष्ट जीव की सत्ता सम्भव है अतः यह सत्त्वान्यथानुपपत्तिरूप हेतु अनेकान्तिक है । २
नहीं हुई है; ऐसे इनमें जल
जो मूलादिक, ग्रागम में प्रतिष्ठित प्रत्येकपने से
हेतु भावकलंक है, यह तीनों राशियाँ असंख्यातसोक
जलकायिक पर्याप्त जीव
पर्याप्त जीवराशि प्रावली
सम्पूर्ण बादर
क्योंकि कर्म सम्बन्ध
अभाव
गुरण हो वह
और अन्त में भुज्यमान
जिन्होंने कार्मण काययोगकाल में पूर्व