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में अर्हन्त और पंच महाव्रतों में अहिंसा का विशेष महत्त्व है, इसलिए सफेद रंग को मध्य में रखा गया है। ध्वज के मध्य में स्वस्तिक को अपनाया गया है, जो चतुर्गति का प्रतीक है । स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु हैं, जो सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को दर्शाते हैं। तीन बिन्दुओं के ऊपर अर्धचन्द्र है, जो सिद्ध शिला को लक्षित करता है । अर्धचन्द्र के ऊपर एक बिन्दु है, जो मुक्त जीव का द्योतक है। जैन संस्कृति में स्वस्तिक का विशेष महत्त्व है। इसीलिए इसे ध्वज के बीच में रखा गया है । चतुर्गति संसार में परिभ्रमण का कारण है । इससे ऊपर उठकर अहिंसा को आचरण में और अर्हन्त को हृदय में अपनाकर ही हम निर्वाण को प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रतीक में भी स्वस्तिक को त्रिलोक के आकार पुरुषाकार में अपनाया गया है, जिसका जैन शासन में महत्त्वपूर्ण स्थान है और यह सर्वथा मंगलकारी है । स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु त्रिरत्न के द्योतक हैं, जो सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को दर्शाते हैं । त्रिरत्न के ऊपर अर्धचन्द्र सिद्ध शिला को लक्षित करता है । स्वस्तिक के नीचे जो हाथ दिया गया है वह अभय का बोध देता है तथा हाथ के बीच में जो चक्र दिया गया है वह अहिंसा का धर्मचक्र है । चक्र के बीच में 'अहिंसा' लिखा हुआ है । प्रतीक के नीचे जो वाक्य संस्कृत में दिया गया है 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्'' "इसका तात्पर्य है कि 'जीवों का परस्पर उपकार ।' प्रतीक में जैन दर्शन का यह सूत्र युग-युग से सम्पूर्ण जगत् को शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है ।
प्रतीक जिस सुन्दर ढंग से बन पड़ा है, उससे समूचे जैन शासन की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है । त्रिलोक के आकार में प्रतीक का स्वरूप यह बोध देता है कि चतुर्गति में भ्रमण करती हुई आत्मा अहिंसा धर्म को अपनाकर सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र के द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकती है। सचमुच में यह प्रतीक हमें संसार से ऊपर उठकर मोक्ष के प्रति प्रयत्नशील होने का पाठ पढ़ाता है ।"
१२ जून सन् १६७४ को निर्वाण महोत्सव समिति की बैठक में जैन ध्वज में नेवी ब्ल्यू (Navy Blue) रंग की जगह काले रंग का उपयोग किए जाने का निर्णय लिया गया । १२ जुलाई १९७४ को दिल्ली में सम्पन्न महासमिति की बैठक में इस निर्णय का पुन: अनुमोदन किया गया तथा यह निर्णय लिया गया कि भविष्य में जो भी ध्वज बने उसमें नेवी ब्ल्यू की जगह काला रंग ही अपनाया जाए । भगवान् महावीर २५००वा परिनिर्वाण महोत्सव समिति की केन्द्रिय एवं प्रादेशिक बैठकों में आचार्यरन श्री देशभूषण जी विशेष रूप से सम्मिलित हुआ करते थे। आपकी पावन उपस्थिति, समारोह के प्रति गहरी रुचि और अनुभवी मार्गदर्शन एवं सहयोग से समारोह के आयोजकों को दिशा एवं बल मिलता था। दिल्ली प्रदेश राज्य समिति द्वारा आयोजित भगवान् महावीर स्वामी के जन्मोत्सव ( अप्रैल १९७३) के अवसर पर आपके प्रेरक सन्देश का श्रवण कर दिल्ली की जैन समाज ने इस आयोजन को सफल बनाने का संकल्प कर लिया था। आयोजन में विशेष रूप से पधारे हुए तत्कालीन उपशिक्षामन्त्री श्री डी० पी० यादव ने भी प्रस्तावित समारोह की सफलता की कामना करते हुए शिक्षा मन्त्रालय द्वारा प्रत्येक सम्भव सहयोग देने का आश्वासन दिया था ।
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८ जुलाई १९७३ को आपके पावन सान्निध्य में २५०० वें परिनिर्वाण महोत्सव की सफलता के निमित्त राजधानी में विशेष रूप से पधारे हुए साधु-साध्वियों मुनिश्री विद्यानन्द जी मुनिश्री रूपचन्द जी महाराज मुनिश्री मंगल जी एवं महासती श्री मृगावती जी महाराज का नागरिक अभिनन्दन आयोजित किया गया । तदुपरान्त २८ अक्तूबर, १९७३ को आपकी पावन उपस्थिति में जगत् वन्दनीय भगवान् महावीर स्वामी जी का निर्वाण महोत्सव आयोजित किया गया। इस अवसर पर जैन सन्तों की प्रेरक वाणी से कृतार्थ होकर मुख्य अतिथि श्री मुहम्मद शफी कुरैशी ( मंत्री, भारत सरकार) ने अपना एक मास का वेतन परिनिर्वाण महोत्सव समिति को प्रदान करने की घोषणा की थी ।
जैन धर्म के परम वन्दनीय सन्तों- आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी, आचार्यश्री धर्म सागर जी महाराज, आचार्यश्री तुलसी जी महाराज, मुनि श्री सुशील कुमार जी मुनि श्री विद्यानन्द जी, मुनि श्री नथमल जी, मुनिश्री जनक विजय जी के सान्निध्य में १६ नवम्बर १९७४ को विशाल धर्मयात्रा का आयोजन किया गया । यह शोभा यात्रा प्रातः साढ़े दस बजे अजमल खां पार्क, करोलबाग़ से प्रारम्भ हुई तथा मॉडलबस्ती बाड़ा हिन्दूराज पहाड़ी धीरज, सदर बाजार, बारी बावली, फतेहपुरी, चांदनी चौक, पाल मन्दिर होते हुए साल किले के ऐतिहासिक प्रांगण में शाम ७-३० बजे विसर्जित हुई। इस विराट् शोभा यात्रा का जैनेतर समाज ने भी हृदय से स्वागत किया । उस दिन ऐसा प्रतीत होने लगा था मामी पायापुर में २५०० वर्ष पूर्व का भगवान् महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव आज पुरानी दिल्ली की प्राचीरों में पुन: साकार रूप ले रहा हो । रात्रि के समय श्रावकों द्वारा किए गए विद्युत् प्रकाश एवं साज-सज्जा को देखकर यह लगता था कि स्वर्ग की देवात्माओं ने स्वयं पृथ्वी पर अवतरित हो कर भगवान् महावीर स्वामी जी का २५०० वा परिनिर्वाण महोत्सव मनाया हो । पत्रकारों की स्मृति में इतना बड़ा धार्मिक जुलूस दिल्ली के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं निकला था ।
कालजयी व्यक्तित्व
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