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पासागर
गतिके पात्र हैं। जो रोति शास्त्रोक्त है और परंपराते चली आ रही है उसमें संदेह नहीं करना चाहिये । जो न रीति केवल मनको कल्पनासे चलाई गई हो उसमें अचि करना ठीक है।
४५-चर्चा तालीसवीं प्रश्न-पतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पाँच शान हैं। इनमें प्रत्यक्षज्ञान कौन-कौन हैं और परोक्षज्ञान कौन-कौन हैं ?
समाधान-इन पांचों शानों से पहलेके मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ये वो ज्ञान परोक्ष हैं और बाकीके तीन भान उत्तरोत्तर गुणों के बढ़ते हुए प्रत्यक्ष हैं। सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है--
मा रोक्ष। प्रत्यक्षमन्यत् । अध्याय १ सूत्र संख्या ११-१२। अन्यत्र भी लिखा है।
मेह सुइ परोक्खणाणं ओही मणहोइ विलयपचक्वं । केवलणाणं च तहा अणोवमं होइ सयलपचक्खं ॥
४६-चर्चा छयालीसवीं प्रश्न--सिद्धपरमेष्ठीको अवगाहना अतिम शरीरसे कुछ कम बतलाई है सो कितनी कम होती है ?
समाधान-जिस शरीरसे केवली भगवान मुक्त होते हैं उसका तीसरा भाग कम हो जाता है। वो भाग प्रमाण सिखोंको अवगाहना रहती है। जैसे तीन धनुषके शरीर वाले मनुष्यको अवगाहना सिद्ध अवस्था ई जाकर वो धनुषको अवगाहनाके समान रह जाती है । सो हो सिद्धांतसारप्रदोपकर्मे लिखा है। । गतसिक्थायभूषायां आकाशाकारधारिणः। प्राक्कायायामविस्तारत्रिभागोनप्रदेशकाः ॥८॥ । लोकोत्तमशरण्याश्च विश्वमंगलकारकाः। अनंतकालमात्मानो तिष्ठन्त्यंतातिगाः सदा ॥६॥
१. मतिज्ञान श्रुतज्ञान परोक्ष हैं अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान विकल प्रत्यक्ष है और केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है। * यह दो मागका रह जाना धन फलकी अपेक्षासे है अन्तिम शरोरका जो धनफल है उससे सिद्ध अवस्थाका घनफल एक भाग
कम है क्योंकि पेट आटी शरीरके भीतरका पोला भाग भो उस धनफलमेंसे निकल जाता है।
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