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चर्चासागर [ ९० ]
किसीने नरकु जरका चित्र बनाया और वह मारा गया तो यद्यपि उसमें साक्षात् जीव नहीं है तथापि उसको 'नरकुंजर मारा गया' ऐसा कहना रूपसत्य है । १ । किसी विद्यमान अथवा अविद्यमान वस्तुको तदाकार अथवा अतदाकार मूर्ति बनाकर उसमें उसीकी स्थापना करना, उसकी मूर्ति बनाकर मंदिरोंमें स्थापना करना जैसे श्री ऋषभदेवकी मूर्तिको ऋषभदेव ही कहना सो स्थापना सत्य है ।
जीवके औपशमिकादि भावोंके पांच भेद हैं तथा उन पांचों भावोंके तिरेपन भेद हैं । इन सबके रिसदका अनुसार व्याख्यान करना सो प्रतीतिसत्य है । भेरी, मूबंग आदि अनेक प्रकारके बाजोंके समुदायमेंसे किसी ऊँचे बाजेके शब्दकी मुख्यता रखकर उसका ही नाम लेना सो स्मृति सत्य है । युद्धमें जो सेनाकी चक्रव्यूह, गरुडव्यूह आदि अनेक प्रकारके व्यूहों की रचना की जाती है उनके अनुसार सेनाको चक्रव्यूहरूप, गरुडब्यूहरूप कहना सो योजना सत्य है। जिस देशमें जिस वस्तुका जो नाम है उसको उसो नामसे कहना जनपद सत्य है । गाँव, नगर, राज वा धर्मकी नीतिमें और आचार्य व साधु आविके उपवेश में ओ चतुर पुरुष हैं उनके वचनों को यथायोग्य स्थान पर तथा यथायोग्य समयपर प्रमाण मानना सो उपवेश सत्य है । द्रव्य और पदार्थोका यथार्थ ज्ञान सर्वज्ञ बेबको है, अल्पज्ञानी छपस्थोंको उनका पूर्ण ज्ञान नहीं है। छपस्थोंको उनका एकवेश ज्ञान है इसलिए प्रासुक अप्रासुक आदिका निश्चय केवली भगवानके वचनोंके अनुसार करना सो भाव सत्य है । षद्रव्य तथा नौ पदार्थोंके स्वभाव और पर्यायको कहनेवाले जैनशास्त्र हैं इसलिये उनके वचनोंको सत्य मानकर उनका श्रद्धान करना सो समय सस्य वा आगम सत्य है । इसप्रकार दश प्रकारकी सत्य भाषा है। सत्याणुव्रतियोंको इनका ग्रहण करना चाहिये। यह बारह प्रकार का असत्य और दश प्रकारके सत्यका व्याख्यान बृहद् हरिवंशपुराणसे लिखा है अथवा और भी जैनशास्त्रों में हैं वहाँसे देख लेना चाहिये ।
८७- चर्चा सत्तासीवीं
प्रश्न – ब्रह्मचर्य व्रतकी नौ बाड हैं तथा अठारह हजार भेद हैं सो कौन-कौन हैं ?
समाधान – स्त्रीके साथ निवास नहीं करना । १ । स्त्रीके रूप तथा श्रृंगारको विकार भावोंसे नहीं देखना |२| स्त्रियोंसे भाषण नहीं करना तथा उनके मधुर वचनोंको रागभावोंसे नहीं सुनना |३| पहले भोगी हुई स्त्रियोंका स्मरण नहीं करना |४| कामको उद्दीपन करनेवाले पदार्थ जैसे घो, दूध, मिश्री, लड्डू, मेवा, भांग,