Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 545
________________ पड़ता है । इसलिये मुनियाँको ऊपर लिखे शूगोंके घर कभी भोजन नहीं करना चाहिये । जो साघु ऐसे शूलोंके घर आहार लेते हैं वे सा नहीं हैं। क्योंकि ऊपर लिखे हुए सब नोंके हो समान हैं। चर्चासागर प्रश्न--मुनि ऊपर लिले शूद्रोंके यहाँ तो आहार ले नहीं तथा ब्राह्मणाविकके घर भोजनको विधि [ २४] मिले नहीं तो फिर क्या करना चाहिये ? उत्तर-मुनियोंका धर्म ही अनेक परोषहों का सहन करना है। इसलिए निर्दोष विषिके मिलने पर हो उन्हें आहार करना चाहिये । ऊपर लिखे शूद्रोंके धर कभी भोजन नहीं करना चाहिये। क्योंकि अपने हाथसे । चूल्हा जलाकर रसोई बनाकर भोजन कर लेना अच्छा है परन्तु मिथ्यावृष्टि ऊपर लिखे हुए जातिवालोंके घर A भोजन करना अच्छा नहीं। इसका भी कारण यह है कि ऊपर लिखे हए मिथ्यावृष्टि छद्रोंके यहाँ जो भोजन तैयार होता है वह समस्त पापोंके समागमसे उत्पन्न होता है। इसलिए उनके घरका भोजन नहीं करना चाहिये । यद्यपि मुनियों को अपने हापसे भोजन बनाना महापापका कारण और वीक्षा भंग करनेका कारण है महावतो ऐसा कभी नहीं करते तो भी शूत्रों के घरको अपेक्षा उसे उत्तम और योग्य बतलाया है। बालोंके घरका । आहार इतना निन्ध और अयोग्य है। सो हो नीतिशतकमें लिखा है.-- वरं कार्य स्वहस्तेन पाको नान्यत्र दुई शाम् । दुई शां मंदिरे यस्मात् सर्वसावयसंगमः॥ २३८-चर्चा दोसौ अड़तीसवीं प्रश्न-इस चतुर्यकाल में जो धर्मका विच्छेद हुआ था। मुनि, अजिका, श्रावक, श्राविका नहीं रहे थे। । सो कोनसे समयमें किन तीर्थरोंके समय में और कितने काल तक विच्छेद रहा था? दर्तमान समयमें कितने हो ब्राह्मण, अत्रिय, वैश्योंमें वा कितने हो कूल-कल र जैनियोंमें धरेजा चलने लगा है तथा कितने हो । लोग मुसलमान बा म्लेच्छोंके साथ खाने लगे हैं परंतु सदाचारको वा शुद्धाचारकी स्थिरता जाति और कुलकी शुद्धता पर तथा भोजन-पानकी शुद्धता पर ही निर्भर करता है । घरेजा करनेवालों की जाति वा कुल कमो शुद्ध नहीं हो सकता और शूदोंके __ साथ खाने-पीने वालोंका आचरण कभी शुद्ध नहीं हो सकता। धरेजासे जो सन्तान वा शरीर पिंड उत्पन्न होता है वह भो। अशुद्ध ही होता है। इसलिये धरेजा करनेवालोंको, उसको सन्तानको, शूद्रोंके साथ खानेवालोंको वा उनके साथ रहनेवाले उनको सन्तानोंको मुनियोंके लिये आहार देनेका अधिकार नहीं है और न जिनपूजन आदि करनेका अधिकार है। मुनियों को भी ऐसे घरोंका भोजन नहीं लेना चाहिये। जो लेते हैं ये मुनिपदसे भ्रष्ट हैं क्योंकि बरेजा करनेवाले मी शूद्रोके समान हैं और यवन, म्लेच्छ आदिके साथ खाने-पीनेवाले भी रुद्रोंके समान हैं। - -

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