Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 544
________________ बाँसामर १२३ ] । साक्षात् श्रस जीवोंकी संकल्पी हिंसा किस प्रकार कर सकता है । अर्थात् कभी नहीं। इसलिए मुंह पर पट्टो । बांधना मिथ्या श्रद्धान, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या आचरण है। इसीलिए दिगम्बर आम्नाय में इसका त्याग करना लिखा है। २३७-चर्चा दोसौ सैंतीसवीं प्रश्न---श्वेताम्बो महावती साओंको मारह कुलोंका आहार लेना निर्वोष बतलाया है। यदि किसी दातारका कुल शूद्र हो तो इनको क्या दोष आता है ? समाधान—यह उत्तम कुल, उत्तम जाति तथा उत्तम धर्मका मार्ग नहीं है। यह तो शूद्रोंका भ्रष्टाधारमय, मद्य, मांस भक्षियोंका धर्म है । परन्तु ये श्वेताम्बरी इसको भी ग्रहण कर लेते हैं। ये श्वेताम्बर साधु जिन अठारह घरोंका भोजन ग्रहण कर लेते हैं उनके नाम ये हैं। जैसा कि नोतिशतक लिखा हैगायकस्य तरालस्य नीचकमोपजीविनः । मालिकस्य विलिंगस्य वेश्यायाः तैलिकस्य च ॥ दीनस्य वतिकायाश्च हिंपकस्य विशेषतः। मद्यविक्रयिणो मद्यपायिसंसर्गिणश्चन ॥ क्रियते भोजनं गेहे यतिना भोगमिच्छता। एवमादिकमप्यन्यत् चिन्तनीयं स्वचेतसा॥ PA जो गा-बजाकर उपजीविका करें ऐसे कमला मत ढोली आदिको गायक कहते हैं। जो नाच कर वा नाटक कर पेट करते हैं । उनको नृत्यकार कहते हैं । ये दोनों हो नोच कर्म कहलाते हैं। मालो, मसक, वेश्या, तेलो, दीन-भिलारी, खाली, कलाल, मद्य पोनेवाले आवि शरवसे मांस-भक्षी, शहद खानेवाले, हिंसक, यवन, " म्लेच्छ, भोल, जाट, गूजर, तबोली, कायस्थ, काछो, दर्जी, नाई, कुम्हार, कुलमी, धाकड़, मोना आवि छात्रों के घर यतियोंको आहार नहीं करना चाहिये । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीन वकि सिवाय अन्य घरका भोजन जो मुनि ग्रहण करते हैं उनके मद्य, मांस, मधुके भक्षणका मिथ्यात्वका तथा हिंसाविक महापापोंका दोष माता है, अन्तराय, भ्रष्टाचार, निर्दयपना मावि अनेक दोष प्राप्त होते हैं तथा अनेक वर्षोंके लगमेसे मुनिपरका नाश हो जाता है। मुनिपवका नाश होनेसे बीमा भंग हो जाती है और दीक्षा भंग होनेसे नरकाविक कुगतियोंमें माना !

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