Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 565
________________ वर्गासागर ५४] याता यान्ति च यास्यति ये भव्याः मुक्तिसंपदम् । आलंब्य व्यवहारं ते पूर्व पश्चाच्च निश्चयम् ।। १६ ॥ कारणेन विना कार्य न स्यात्तेन विना नयम् । व्यवहारं कदोत्पत्तिनिश्चयस्य न जायते ॥ १७ ॥ जिनागमे प्रतीतिः स्याज्जिनस्याचरणेऽपि च।। निश्चयं व्यवहारं तन्नयं भज यथाविधि ॥ १८ ॥ व्यवहारं विना केचिन्नष्टाः केवलनिश्चयात् । निश्चयेन विना केचित् केवलव्यवहारतः ॥ १६ ॥ द्वाभ्यां दृग्भ्यां विना न स्यात् सम्यग्द्रव्यावलोकनम् । यथा तथा नयाभ्यां चेत्युक्तं चे स्याद्वादिभिः ॥ २० ॥ निश्चयं क्वचिदालम्ब्य व्यवहारं क्वचिन्नयम् । विधिना वर्तते प्राणी जिनवाणीविभूषितः ॥ २१ ।। अर्थ-जो भव्य जीव पहले व्यवहार धर्मका आलंबन करते हैं तदनंतर निश्चयको ग्रहण करते हैं वे हो जीव मोक्ष जाते हैं ऐसे हो जोब मोक गये हैं और ऐसे हो जायंगे । यह नियम है कि बिना कारणके कार्य को उत्पत्ति नहीं होती। उसी प्रकार बिना व्यवहार धर्मके निश्चय धर्मको उत्पत्ति नहीं होती। इसलिये भव्य जीवोंको जितागमका बखान और जिनाचरणका पालन करना विधिपूर्वक निश्चय और व्यवहार दोनों नयोंसे । होना चाहिये । केवल एकके सेवन करनेसे कार्यको सिद्धि नहीं होती। कहीं पर तो व्यवहारके बिना केवल निश्चय नयका एकांत पक्ष लेनेसे केवल निश्चय नयका पालन करनेसे कितने ही जीव नष्ट हो जाते हैं । कितने । हो लोग बिना निश्चयके केवल व्यवहार नयके आश्रयसे नष्ट हो जाते हैं। तथा किसने ही लोग धोनों नयोंसे । तथा सम्यग्दर्शनसे रहित होकर द्रव्योंके यथार्थ स्वरूपके श्रद्धानसे वंचित रह जाते हैं। इसलिये स्याद्वादियोंने 1. पदार्थीका स्वरूप जिस नयसे बतलाया है उसको उसी रूपसे ग्रहण करना चाहिये । जहाँ निश्चय नयसे बतलाया ।

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