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सागर ५६७ ]
समाधान --- पहला परमस्थान सज्जाति है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यको शुद्ध जाति और शुद्ध कुलमें जन्म लेना सज्जाति है । दूसरा परमस्थान सद्गृहस्थपना है, सम्यग्दर्शनपूर्वक श्रावकों के व्रत और आचरणोंका पालन करना सद्गृहस्थपना है। तीसरा परमस्थान परिव्राजकपना है । रत्नत्रयसे सुशोभित अट्ठाईस मूलगुणोंको पालनकर मुनियोंके व्रत पालन करना परिव्राजकपना है। चौथा परमस्थान सुरेन्द्रता है । उस महाव्रतके फलसे इंद्रपदा प्राप्त होना सुरेन्द्रता है । पाँच परमस्थान साम्राज्य है । इंद्रका शरीर छोड़कर चरम शरीर धारणकर चक्रवर्ती वा तीर्थङ्करपद पाकर साम्राज्य से विभूषित होना साम्राज्य परमस्थान । छठा परमस्थान अरहंतपद है । उस साम्राज्यका त्याग कर, दीक्षा लेकर तथा घातिया कर्मोंको नाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर अरहंतपद प्राप्त करना छठा परमस्थान है। सातवां परमस्थान निर्वाण है अरहंतपद प्राप्त होनेके अनन्तर बाकी अघातिया कर्मोंका नाश कर निर्वाणपद प्राप्त करना सातवाँ परमस्थान है। इस प्रकार ये सात परमस्थान हैं तो जीवोंको बड़े पुण्योदयसे प्राप्त होते हैं। सो ही महापुराण में लिखा हैसज्जातिः सद्गृहस्थस्त्वं पारिव्राज्यं सुरेन्द्रता । साम्राज्यं परमार्हन्त्यं निर्वाणं चेति सप्तधा ॥ ये सातों परमस्थान हमारे भी हों ऐसो हमारी प्रार्थना है इसके सिवाय हमारी और कुछ इच्छा नहीं है। सो भी महापुराण में दूसरी जगह लिखा है-
सज्जातिभागी भव, सद्गृहस्थस्त्रभागी भव, , मुनीन्द्रत्व भागी भव, सुरेन्द्रभागी भव, साम्राज्यभागीभव, अर्हभागी भव, निर्वाणभागी भव ।
इस प्रकार श्रीमज्जिनसेनाचार्यने आदिपुराणके चालीसवें पर्व में आराधनादि क्रियाओंके मंत्रोंमें लिखा है । इस प्रकार सप्त परमस्थान बतलाये ।
२५४ - चर्चा दोसौ चौवनव
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरिआणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥
तर मंगलं, अरहंत मंगल, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ।
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