Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 592
________________ इस कालसे बातराण पदयअरहन्त परमेष्ठी, सिद्धपरमेष्ठो, आचार्यादिक साधुपरमेष्ठी और केवलोप्रणीत धर्म ये चारों ही बचे हैं। इसलिये ये ही मंगलरूप हैं, ये हो लोकोत्तम हैं और ये ही शरण ग्रहण वर्षासागर करने योग्य हैं। ५७१ । CAMERA इस प्रकार अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय साधुमय साधु और केवलोप्रणीत धर्म ये चारों हो हमको मंगल करनेवाले हों। ये चारों हो हमारे सब प्रकारके जालोंको ( विनोंको हरम करें। तीनों लोकोंमें ये हो चार उत्तम पदार्थ है और भव-भवमें हमें इन चारोंको शरण प्राप्त हो यही हमारी प्रार्थना है। मेरे समस्त दुःखोंका क्षय हो, समस्त आठों कोका नाश हो, मुझे आत्मबोधि ( आत्मज्ञान वा रत्नअय) को प्राप्ति हो, मुझे सद्गति प्राप्त हो, समाधिमरण प्राप्त हो और जिनेन्द्रदेव के मुणरूपी संपबाकी प्राप्ति हो । यही हमारी श्रोसर्वज्ञ, वीतराग, अरहंत, परमात्मा, परमेष्ठी आदि अनेक नामोंसे सुशोभित तीनों लोकोंके। स्वामी श्रीकेवली भगवानसे प्रार्थना है। सो हमारी यह प्रार्थना पूर्ण हो। इस प्रकार यह चर्चालागर ग्रन्थ समाप्त हुआ। इसमें दो सौ चौवन पर्चायें हैं उममेंसे यह अन्तको चर्चा शिखररूप है इसलिये इसमें मंगलभूत सर्वोत्तम और शरणभूत परमेष्ठियोंका नाम उच्चारण कर अन्तिम मंगल किया है। आगे इस शास्त्रमें जो-जो चर्चायें आई हैं उनको पूर्ण सूची लिखते हैं । प्रश्न--सूची तो पहले लिखनी चाहिये अन्तमें क्यों लिखी ? समाषान-कथा पुराण आदि प्रबन्ध शास्त्रोंकी सूची तो पहिले ही लिखी जाती है परम्परासे आम्नाय! भी यही है। परन्तु यहां पर तो प्रश्नोत्तरोंका तरंगमय शास्त्र बता है सो ज्यों-ज्यों तरंग आती गई त्यों-त्यों शास्त्र बनता गया। पहलेसे कुछ प्रमाण निश्चित या नहीं। इसीलिये प्रमाणके बिना पहले नहीं लिखी गई । । इसी कारण अब आगे लिखो जाती है । ऐसा समझ लेना चाहिये। यह चर्चासागर किन-किन ग्रन्योंसे लेकर बनाया है उनकी सूची शास्त्रका विस्तार होनेके भयसे नहीं । लिखी है उन सब शास्त्रोंकी संख्या १९१ (एफसौ इक्यानवे) है। इनके सिवाय उक्तं च श्लोक हैं, गाथा हैं । । अन्यमतके श्लोक हैं इस प्रकार इस चर्चासागरमें अनेक शास्त्रोंका मत प्रगट किया है। १. इस ग्रन्थमें सूची इसके आगे है परन्तु सबके सुभीतेके लिये हमने विस्तारके साथ लिखकर पहले लगा दी है। [ ५७१

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