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बासागर
नर नारी भव्य अनेक आय, बने पूर्जे मन वचन फाय । फुनि श्रवण करें जिनवाणि नित, श्रावक सुश्राविका एक वित्त ॥५॥ यहाँ बहे नर पण कर, लामें जैनी जन धर्मकार । सामें बागंबर शुभवेश सार, साकरि आए हूमड विचार ॥ ६ ॥ शातीय बागड्या ब्रउफ साह. लघुशाखा गोत्र बघाणु ताह। है बालसोसित गोज बास ताको सत जितभ्रमरपास ॥७॥ शुभ सुमन तामें अरुण अंत, ताने बहु शास्त्र सुदेखि तंत। फुनि प्रश्नोत्तर सू और पास, निर्णय करि शास्त्रनिमें खुलास ॥८॥ निजपर निज अनुज मनु काजे, मुर अरी अरुण युत अंतराज । कौमार लाल कुम नाम छाज, समान हित कोनो यह समाज ॥९॥ बहुसंशयनावाक गुण प्रकाश, भव्यनिको श्रद्धन रूप खास। हठयाही टेको श्रद्ध क्षीन, लखि दुर्वच बोले बुद्धि होन ॥१०॥ यह स्व स्व धर्मनि करत त्याग, सहकार पलाडू पिक कुकार्ग । जिम जाणो याको जाति भाव, नहि होय गईभी रूप गाव ॥११॥ संवत्सर विक्रम अर्क राज्य, समयेते विगै हरि चन्न' छाल । माघमास शशि पा शुख, पंचम गुरुवार अनंग' युद्ध ॥१२॥
१. सुमन शब्दका अर्थ फूल है फूलों में सबमें उत्तम कूल चंपाका है और अन्त में अरुण अर्थात् लाल है इस प्रकार चनालाल नाम निकलता है । २. छोटे भाईके पुत्र के लिए, ३. मुरारी, ४. लाल ( ३ + ४ = मुरारीलाल)
५. आम, ६. प्याज, ७, कोयल, ८. कौा । वे लोग धर्मको इस प्रकार छोड़ते हैं जैसे कोयल आमको छोड़ती हो और कौआ @ प्याजको छोड़ता हो अर्थात् कोयल आमको छोड़ती नहीं यदि छोड़े तो वह मुर्ख है तथा प्याजको छोड़नेवाला कोआ मूर्ख है उसी प्रकार धर्मको छोड़नेवाले महामूर्ख हैं। ९. गधी कभी गाय नहीं बन सकतो, 10. दिशाएँ दश है।
११. चंद्र एकको कहते हैं। इन सबके मिलानेसे तथा अंकानां वामतो गतिः अर्थात् अंकोंकी गति बाई ओर होती है इस न्यायसे १८१० है । अर्थात् विक्रम सम्बत् १८१० में यह ग्रन्थ बना । १२. बसंत पंचमी ।