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चर्चासागर
इससे सिद्ध होता है कि ये ब्राह्मणादिक उत्तम नहीं है किन्तु तीनों लोकोंमें अरहन्त, सिद्ध, साधु और केवलीप्रणीत धर्म ये चारों ही उत्तम हैं ।
अरहंत, सिद्ध, साधु और केवलोप्रणोत धर्म ये चारों ही मंगलमय हैं और चारों ही लोकोत्तम हैं। क्योंकि इनके सिवाय अन्य कोई भी इष्ट पदार्थ नहीं है ऐसा जानकर
'चत्तारि सरणं पवजामि' अर्थात् मैं चारोंके ही शरण प्राप्त होता हूँ। 'अरहन्त सरणं पश्वज्जामि' दूसरे सिद्ध परमेष्ठोके कारण जाता हूँ । 'साहू सरणं पब्वज्लामि' तीसरे आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुओंके शरण जाता हूँ। तथा 'केवलिपण्णत्तो धम्मो शरणं पव्वजामि' केवलीप्रणीत क्यामय धर्मको तथा उत्तम क्षमा, माईव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्यरूप दशलक्षण धर्मको शरण जाता हूँ अथवा निश्चय वा व्यवहार लक्षणोंसे सुशोभित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय धर्मको शरण जाता हूँ। इस प्रकार अरहन्त, सिद्ध साहू, और केवलोप्रणीत धर्मको शरणमें ही मैं प्राप्त होता हूँ।
इस संसारमें इन्द्र, चमे, धरणे, अzi, राजाधिराज, देव, दानव, भूत, प्रेत, यक्ष, राक्षस, पिशाच, कुलदेवी, भैरव, क्षेत्रपाल, चंडो, मुण्डी, कालो, शीतला, धोजासणो अकत, पितर, सूर्य, सतो, मणि, मंत्र, यंत्र, तंत्र, आवित्यादिक नवग्रह, औषधि, ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा और भी कितने हो प्रकारके देवी, देवाताओंको । शरण मानते हैं और कहते हैं कि इनसे मरण आदिका भय दूर होता है सो सब मिथ्या है। क्योंकि ये सब देवी, बेवता अपनेको कालसे नहीं बचा सके। जब वे कालसे अपनेको ही नहीं बचा सके तो फिर वे औरोंकी रक्षा किस प्रकार कर सकते हैं। इसलिये जन्म, मरणके भयसे रहित, स्वर्गमोक्ष देनेवाले और समस्त जोधोंका कल्याण करनेवाले श्रीअरहन्त, सिद्ध, साधु और केवलोप्रणीत धर्म हो परम पवार्य है और ये हो शरण लेने योग्य | हैं। इनके सिवाय अन्य सब देवी, देवता कालके ग्रास बन चुके हैं सो ही कालज्ञानमें लिखा हैकाले देवा विनश्यन्ति काले चासुरपन्नगाः । नरेन्द्रादिसुरेन्द्राश्च कालेन कवलीकृताः॥
अर्थ-इस कालमें सब देव नष्ट हो चुके हैं इस कालमें ही राक्षसादिक असुर और नागकुमारादिक पन्नग नष्ट हो चके हैं। तथा नरेन्द्रादिक समस्त मनुष्य और सुरेन्द्राविक समस्त देव सब इस कालके ग्रास बन चुके हैं। भावार्थ-इन सबको कालने खा डाला है इसीलिये कालको सर्वभक्षी कहते हैं।