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चर्चासागर
अर्थ—जो भव्यजीव जल, फलादिक द्रव्योंसे समस्त दोषोंसे रहित बोतराग सर्वज्ञदेवको तोन समय पूजा करता है वह ज्ञानी पुरुष तीसरे भवमें अथवा सातवें, आठवें भवमें मोक्ष प्राप्त करता है। इस प्रकार तुम्हारे ही शास्त्रोंमें पूजाका विधान है इसलिए तुम जो जिनपूजाका निषेध करसे हो तो सब मिथ्या है। तुम्हारे यहाँ भी नाम, स्थापना, ब्रव्य, भाव ये चार निक्षेप कहे हैं सो स्थापना निक्षेप बिना प्रतिमाके बन ही नहीं सकता 'यह वही है' इस संकल्पको स्थापना कहते हैं और जिसमें यह सङ्कल्प किया जाता है वही प्रतिमा कहलाती है । इसलिये तुम्हारे भतसे ही प्रतिमा पूजनका निषेध नहीं हो सकता ।
इसके महान सोतसूत्रमें लिखा है। किसी श्रावकने पूछा है कि पुण्यबंध किस प्रकार होता है तब इसके उत्सरमें कहा है कि नवीन जिनमंदिर बनवाना, उसमें जिनप्रतिमा बनवाकर, प्रतिष्ठा कर, स्थापन करना महापुण्यबंधका कारण है । इससे जीव बारहवें स्वर्ग में जाता है । भत्तपत्त नामके सूत्रमें लिखा है जिनमंदिर, जिनबिम्ब, जिनसत्र साधु-साध्यो, श्रावक-श्राविका इन सात क्षेत्रों में। करना प्रावकका प्रससे बड़ा धर्म है। हमारे हिना और कोई बड़ा धर्म नहीं है । ज्ञातृधर्मकया नामके सूत्रके सोला अधिकारमें लिखा है कि अर्जनकी रानो द्रोपवी नामको सतीने सर्याभ नामके देवके समान सत्तरभेद श्रीजिनप्रतिमाको पूजा को । उसीसे कर्माको नाश कर मोक्ष गई । यदि तुम्हारे यहाँ जिनप्रतिमाको पूजा करना नहीं लिखा है तो यह कथन कैसे लिखा है। प्रश्नव्याकरण सूत्रमें लिखा है कि पाटलीपुत्र नगरमें जीवन स्वामी श्रीमहावीरस्वामीको यति, श्रावक वन्दना करते हैं अर्थात् पटना नगरमें श्रोमन्दिरमें जो श्रीमहावीर स्वामीको प्रतिमा विराजमान हैं उनकी वंदना करते हैं। दशवकालिक सूत्रमें चैत्यवंदनाका अधिकार करना लिखा है। इसके सिवाय एक कथा लिखो है कि एकसेन मालो नित्य नवांगपूजा करता था। अर्थात् अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, दर्शन, ज्ञान, चारित्र और इनको पालन करनेवालोंको नव पुष्पोंसे प्रतिदिन पूजा करता था सो उसके फलसे यह नौ भव तक अनेक प्रकारको सम्पदाका उपभोग करता रहा और मोक्ष गया सो यह कथा तुम्हारे यहाँ है या नहीं ?
इसके सिवाय तुम्हारे शास्त्रों में तोन लोकसंबंधी जिनमंदिर और जिनप्रतिमाओंका सदा निश्चलरूपसे रहनेका विधान लिखा है। तथा लिखा है-अद्विधारो मुनि और देव विद्याधर आदि आठवें नंदीश्वर द्वीपमें