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चर्चासागर
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निषेध किया है। जो लोग प्रतिमाजीकी पूजा करते हैं उसमें हिंसादिक महापाप होता है सो हो श्वेताम्बरोंके यहाँ लिखा है ।
धम्मस कारणे मूढो जो जीवं परिहिंसई । दहिऊण चंणनं तरु करेइ अंगार वाणिज्जं ॥ अर्थ — जो जीव धर्मके लिए जीवोंकी हिंसा करते हैं वे मूर्ख हैं। वे लोग कोयला बेचनेके लिए चंदनवृक्ष जलाते हैं। भावार्थ -- कोयला बेखनेके लिये चंदनको जलाना बड़ी मूर्खता है। संसार में और अनेक वृक्ष हैं अन्य वृक्षोंका अभाव नहीं है इसलिए केवल कोयले बेचनेके लिये चंदन जलाना भारी मूर्खता है इसी प्रकार प्रतिमाको पूजा करना और उसमें हिंसा करना भारी भूल है इसको हम लोग ( दूँढ़िया ) कभी नहीं
के
मानते हैं ।
उत्तर --- प्रथम जिस गायाका प्रमाण दिया है वह प्राचीन नहीं है तुम्हारी बनाई हुई नवोन है इसलिए वह प्रमाण नहीं हो सकती। दूसरे यह गाथा छन्दशास्त्रके विरुद्ध है। क्योंकि इसमें जितनी मात्राएं होनी चाहिये उतना नहीं हैं, कम हैं। गायाओंमें, मात्राओंकी संख्या बारह, अठारह, बारह, पन्द्रह होती हैं । पहले चरणमें बारह, दूसरेमें अठारह तीसरेमें बारह और चौथे चरण में पन्द्रह मात्राएं होती हैं। इस प्रकार सब सत्तावन मात्राएं होती हैं, सत्तावन मात्राओंकी गाथा कहलाती है । सो हो भाषा छन्द शास्त्रमें लिखा हैआद द्वादश करिए। अठारह बार फिर धरिये ॥ संख्या शेष बताई । गाथा छन्दक हो भाई ||
सो इस गाथामें सत्तावन मात्राएँ नहीं है दूसरे चरण में कम मात्राएँ हैं इसलिये यह गाया अप्रमाण है । दूसरी बात यह है कि यह गाथा प्राचीन नहीं है श्वेताम्बरोंके यहाँ ही यह गाथा प्राचीन इस प्रकार है। हरिऊण परं दव्वं पूजं जो करेड़ जिणवरिंदाणं । दहिऊण चंदणतरु' करेइ अंगारवाणिज्जं ॥
अर्थ - जो मनुष्य दूसरेका द्रव्य हरण कर चोरी कर उस धनसे भगवान जिनेन्द्रदेवको पूजा करता है वह मानों कोयलेके व्यापार के लिए चंदन वृक्षको जलाता है । यह प्राचीन गाथा है सो प्रमाण है । इसलिए तुम्हारी बनाई हुई नवीन गाया प्रमाण नहीं है ।
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