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॥ है कि मोक्षमार्ग नग्नरूप है । जो जिनाश्रमी वती होकर भी नग्न नहीं रह सकते वे भोजनके समय नग्न होकर
भोजन करते हैं और पाणिपात्र में भोजन करते हैं । यही अभिप्राय है। चिसिागर
२४१-चर्चा दोसौ इकतालीसवीं प्रश्न-ज्ञान पांच हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलनान । इनमेंसे किसी एक जीवके एक ही समयमें अधिकसे अधिक कितने ज्ञान हो सकते हैं । सब हो सकते हैं या नहीं।
समाधान—किसी एक जीवके एक हो समयमें अधिक से अधिक बार ज्ञान तक होते हैं, पांचों ज्ञान एक साथ नहीं होस । यदि एक मान होता वाबसमान होला । केवलज्ञानके साथ और कोई ज्ञान नहीं होता। । इसका भी कारण यह है कि केवलज्ञान क्षायिक ज्ञान है । मानावरणका अत्यंत क्षय हो जानेपर क्षायोपमिक । ज्ञान नहीं हो सकते क्योंकि मायोपमिक चारों ज्ञानोंमें देशघाती कर्मोके उपयको अपेक्षा रहती है। केवल
शान समस्त ज्ञानावरण कर्मके नाश होनेसे होता है। इसीलिये यह अकेला होता है। यदि दो ज्ञान होंगे तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान ये दो ज्ञान होंगे। यदि तीन होंगे तो मतिजान, श्रुतझान, अवधिज्ञान अथवा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मनःपर्ययशान ये तीन ज्ञान होंगे। यदि चार होंगे तो मतिबान, श्रुतहान, अवधिप्तान और मनःपर्ययज्ञान येचार ज्ञान होंगे सो ही मोक्षशास्त्र लिखा है
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्व्यः। -अ० २ सूत्र ४३
२४२-चर्चा दोसो वियालीसवीं प्रश्न-चतुर्णिकाय देवोंके मैथुन किस प्रकार होता है। किसके समान होता है। सबके समानरूपसे । । होता है या अलग-अलग रूप से । समाधान-मोक्षशास्त्रमें लिखा है
कायप्रवीचारा आ ऐशानात् । -अ० ४ सूत्र ७ १. साधुओंकी दीक्षा लेकर भी जो नग्न नहीं रहते वे वास्तवमें साधु नहीं हैं। ऐसे लोगेको भोजनके समय भी नग्न होना व्यर्थ
है। उन्हें चाहिये कि वे सातवीं या सातवी प्रतिमासे ऊपरको दोक्षा लेवे जिससे उन्हें यह मायाचारोन करनी पड़े।