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सागर १५२]
गाढ़रूप श्रद्धान होना गाड़ सम्यग्दर्शन है ॥ ९॥ वही सम्यग्दर्शन जो अत्यन्त गाढ़ श्रद्धानरूप हो उसको परमाबगाढ़ सम्यग्दर्शन कहते हैं ।। १० ।। इस प्रकार कारण भेदसे सम्यग्दर्शनके बस भेव और हो जाते हैं । तथा ऊपर लिखे हुए निसर्गज और अधिगमज ये सम्यग्दर्शनके दो भेद भी इसीमें शामिल हो जाते हैं । सो ही श्री
गुणभद्राचार्य विरचित आत्मानुशासनमें लिखा है| आज्ञामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रबीजसंक्षेपात्। विस्तारार्थाभ्यां भवमवगाढपरमावगाढे च ॥ इन बसोंका विशेष वर्णन आत्मानुशासनसे जान लेना चाहिये। यहाँ बहुत संक्षेपसे लिखा है ।
२४६-चदोसो छालीसवीं प्रश्न-धर्मध्यानके चार भेद हैं-आज्ञाविषय, अपायविधय, विपाकविच्य और संस्थानविचय। इनके सिवाय धर्मध्यानके और भी भेव कहे आते हैं सो कौन-कौन हैं ?
समाधान-इस धर्मध्यानके दस भेद बतलाये हैं उनमें ऊपर लिखे चार भेद भी शामिल हैं अर्थात् ऊपर लिखे चार भेदों सहित बस भेव हैं उनके नाम ये हैं। अपायविषय १, उपाविचय २, जीवविषय ३, अजीवविचय ४, विपाकविषय ५, बैराग्यविचय ६, भविचय ७, संस्थानविषय ८, आजाविषय ९ और हेतुविश्चय १० ये दस भेद हैं।
कर्मोके नाश होनेके कौन-कौन कारण हैं, किस-किस उपायसे कर्म नष्ट होते हैं। इस प्रकार चितवन करना तथा कर्मबंधके कारण रानादिक भावोंसे अरुचि करना और मेरे वीतराग भावोंको प्राप्ति कम हो इस प्रकार वोतराग भावोंका चितवन करना अपायविचय है ॥ १ ॥ राग-द्वेषसे रहित वीतरागमय पवित्र भाव वा ज्ञान, वैराग्य आदि जो-जो मोक्षके कारण हैं वे मेरे कब प्राप्त होंगे। किस प्रकार प्राप्त होंगे इस प्रकार निरन्तर चितवन करना उपाविचय है॥२॥ यह जीव द्रव्याथिक नयसे अनादिनिधन तथा ध्रवरूप है और पर्यायाथिक नयसे उत्पायव्ययरूप है, वा उपयोगरूप है इस प्रकार जीवके स्वरूपका चितवन करना सो जीवविचय है ॥ ३ ॥ पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये पांच द्रव्य अजीव है। इनके स्वरूपका चितवन । करना अजीवविषय है ।। ४ ।। शुभ-अशुभ कर्मों के उदयका वा उनके सुख-दुःखरूप फलोंका चितवन सो विपाकविषय है ॥ ५॥ संसार शरीर इन्द्रिय भोग आहिसे उदास वा विरक्त होना, इनको दुःखका कारण