Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 551
________________ समाधान-ये ऊपर लिखे हुए दोनों ही श्रद्धान ठीक नहीं हैं। पदि आत्मा कोई पदार्थ न होता तो । । जाति-स्मरण जानके द्वारा पहले जन्मको पर्यायको तथा उसकी समस्त वशाको यह जीव किस प्रकार जान लेता सागर । है अथवा किस प्रकार देख लेता है। यदि आत्मा कोई पदार्थ न होता तो भूत-प्रेत आदिक नीच देव अपने १०] पूर्व जन्मको सब बातें किस प्रकार बतला देते हैं। ये दोनों ही बातें संसारमें देखी जाती हैं और उससे लोग पूर्व जन्मका विश्वास करते हैं इसलिए चार्वाकका कहना सब व्यर्थ और भ्रमरूप है। क्योंकि यह आत्मा । अनादिकालसे कर्मबंधसे बंधा हुआ चला आ रहा है । उस कर्मबंधसे हो नवीन कर्मोंका आस्रव करता है। वह आस्रव इसके क्रोधादिक कषायोंसे होता है। क्रोधादिक कषाय प्रमादसे उत्पन्न होते हैं । प्रभाव हिंसादिक । महापापोंसे होता है । हिंसादिक अवतरूप महापाप मिथ्यात्वसे पुष्ट होते हैं और मिथ्यात्वसे यह आत्मा सदा मलिन रहता है। वह मलिन आत्मा काललब्धि पाकर एक मनष्यभवमें सम्यग्दर्शन व्रत स्वपर विवेक और। निष्कषायताके योगसे कोका नाश करता हुआ मक्त होता है। यदि आत्मा न होता तो अहधार वा ममत्व। आदि किसको होता? इससे सिद्ध होता है कि आत्मा है इसमें किसी प्रकारका सन्देह नहीं है । 'आत्मा नहीं है' यह कहना सर्वथा व्यर्थ है। यदि तू आत्माका अभाव मानता है सो यह मानना भी आत्माके बिना जड़ पदार्थके कैसे हो सकता में है। यह मानना वा समझना आत्माका ही लक्षण है । क्योंकि ऐसा ज्ञान चैतन्यरूप आत्माके बिना जड़ पदार्थमें हो सकता । दूसरी बात यह है कि त आत्माका अभाव कहनेवाला कौन है। जड़ है या चैतन्य है। । यदि तू तन्य है तो आत्मा स्वतः सिद्ध हो गया, और यदि तू जड़ है तो जड़को ऐसा ज्ञान हो नहीं सकता। इसलिये आत्माका अभाव कहना सरासर मिथ्या है। तथा इस प्रकार मिथ्या भाषण करनेसे आत्माका कभी, कल्याण नहीं हो सकता। सांख्य आत्माको सदा मुक्त मानता है। यदि यह आत्मा सदा मुक्त होता तो चारों गतियोंकी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण क्यों करता ? वहाँके दुःख या सुख क्यों भोगता? और ऊँच-नीच अवस्था किस प्रकार धारण करता ? इससे मानना पड़ता है कि सम्यग्दर्शनके बिना आत्मा सदा अशुद्ध है। सम्यग्दर्शनके होने पर इसकी शुद्धता होती है । इसमें किसी प्रकारका संदेह नहीं। आत्माको सदा मुक्त मानना सर्वथा मिथ्या है। सो ही आत्मानुशासनमें लिखा है PagesaxpreesmammAtamentarNEPARAMPAIN ३० । १३० - - --- - - --

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