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समाधान-सौधर्म और ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्गाके युगलोंमें जो मानस्तम्भ है उसपर काबड़के
आकारके संकलसे लटकते हुए दो-दो पिटारे हैं। उन पिटारोंमे तीर्थस्थरोंके पहननेके वस्त्राभरण रहते हैं । वहाँसे वर्षासागर वस्त्र, आभरण भगतान के पास पहुँलाने जाते हैं और वे भगवान उनको धारण करते हैं।
उसमें भी इतना विशेष है कि सौधर्म स्वर्गके मानस्तम्भके पिटारेके वस्त्राभरण तो पांचों मेरुसम्बन्धी पांचों भरतक्षेत्रोंमें उत्पन्न हुए तीर्थङ्करोंको पहुँचाये जाते है । ईशान स्वर्गके मानस्तम्भके पिटारेके वस्त्राभरण पांचों मेरुसम्बन्धी ऐरावत क्षेत्रों में उत्पन्न हुए तीर्थकरोंको पहुँचाये जाते हैं । सनत्कुमार स्वर्गके मानस्तम्भके पिटारेके वस्त्राभरण पूर्वविवेहोंमें उत्पन्न हुए तीर्थरोंको पहुंचाये जाते हैं । माहेन्द्र स्वर्गके मानस्तम्भके पिटारेके वस्त्राभरण पश्चिम विदेहोंमें उत्पन्न हुए तीर्थङ्करोंके यहां पहुंचाये जाते हैं। उन पिटारोंकी रक्षा देवियां । करती है और वे ही उन वस्त्राभरणोंको पहुंचाती। उनकी ऊंचाई आदिका वर्णन अन्य ग्रन्थ चाहिये। यहाँ संक्षेपसे कहा है सो हो त्रिलोकसारमें लिखा है
चिट्ठति तत्य गोरुदचउत्थवित्थार कोसदीहजुदा ।
तित्थयराभरणचिदा करंडया रयणसिक्कधिया ।। ५२० ।। तुरियजुद विजुदछज्जोयणाणि उवरिं अधोवि ण करंडा।
सोहम्मदुगे भरहेरावदतित्थयरपडिबद्धा ॥ ५२१ ।। । साणककुमारजुगले पुब्ववरविदेहतित्थयरभूसा । टविदच्चिदा सुरेहिं कोडीपरिणाहि बारंसो॥
२४०-चर्चा दोसौ चालीसवीं प्रश्न-इस समय के जिनाप्रमो भोजनके समय बस्त्रोंको उतारकर नग्न होकर भोजनपान करते हैं सो है इसका क्या अभिप्राय है ?
समाधान-षट्पाहुड़में लिखा है। णिचेलेयाणिपत्तं उवइट्ठपरमजिणवरिंदेहिं ।इकोवि मोक्खएमग्गो सेसाय असग्गया सब्वे ॥
अर्थ-भगवान अरहंतदेवने उत्कृष्ट मोक्षमार्ग वस्त्ररहित नग्नरूप ही बतलाया है। इससे सिद्ध होता