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सापर
1 मूर्खान मूढाश्च गर्विष्ठान जिनधर्मपिवर्जितान् । कुवादवादिनेऽस्यर्थ त्यजेन्मौनपरायणः॥ नम्रीभूताः परं भक्त्या जैनधर्मप्रभावकाः। तेषामुद्वर्त्य मूर्खानं घूयाद्वाचं मनोहराम् ॥६॥
नीतिशतकमें भी इसीप्रकार लिखा है। निम्रन्थानां नमोस्तु स्यादर्जिकानां च वंदना । तस्मै दानं च दातव्यं यः सन्मार्ग प्रवर्तते ॥ पाषंडिभ्यो ददहानं तन्मिथ्यात्वप्रवर्धकम् । श्रावकस्योच्चैरिच्छाकारोऽभिधीयते ॥२॥
si- को इलाकार करना बतलाया सो पहले चतुर्थकालमें किलोने किसीको किया भी है ?
समाधान-रत्नोपमें एक अमितगति नामका विद्याधर मुनि हो गया था। उसके पास सिंहपीव और । बराहग्रीव नामके उसके पुत्र आये थे उसी समय सेठ चारवत्त वहां पहुंचा था। तब उन मुनिने अपने दोनों पुत्रोंसे कहा था कि यह चारुवत्त मेरा मित्र है तुम इसे इच्छाकार करो। तब उन दोनों पुत्रोंने उठकर चावतसे इच्छाकार किया । ऐसा कथन सप्तव्यसन चरित्रमें लिखा है । यथातदा तु मुनिना प्रोक्तं पुत्रो मित्रं ममैव हि । चारुदत्ताभिधानोयमिच्छाकारं कुरु द्रुतम् ।।
यही कथन पुण्यालवपुराणमें आया है। रामचन्द्रविरचित पुण्यालबमें लिखा है
तत्पुत्रौ सिंहनीववराहग्रीवो सविमानौ तं वंदितुमागतो । वंदित्वोपवेशने क्रियमाणे सति तेनोक्तं चारुदत्तस्येच्छाकारं कुरुतमिति कृते तस्मिन् ।
इसप्रकार लिला है
लोगोंमें जो परस्पर जुहारु करनेके लिये कहा है उसको कथा इसप्रकार है। । जिणवरधम्मं गहियं हणेइ दुट्ठकम्माणं । संघइ आसवदारं जुहारु जिणवरो भणियं ॥
अर्थात्-ज से जिनवर धर्मको ग्रहण करनेवाला, हकारसे दुष्ट कर्माको हनन करनेवाला, और रु से आमवरूपी द्वारको रोषन वा बंद करनेवाला जो हो उसको जुहाए कहते हैं।
दूसरी जगह भी लिखा हैयुगादिशषभं देवं हारिणं सर्वसंकटम् । रक्षन्ति सर्वजीवानां तस्माज्जुहारुमुच्यते ॥
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