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वीसामर (५२२ }
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अर्थात–जु से युगको आदिमें होनेवाले वृषभदेवका ग्रहण है। हा शाम्बसे समस्त संकटोंसे दूर करने. ॥ वालेका ग्रहण है और र से समस्त जीवोंकी रक्षा करनेवालेका ग्रहण है । ऐसा यह जुहारु शम्ब है।
२३६-चर्चा दोसो छत्तीसवीं प्रश्न-श्वेतांबरोंके साधुओंके मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे जीवन पर्यंत छहों कायको हिंसाका त्याग होता है । सब मुहपट्टी न लगावे तो बोलने पर या सिद्धांताविकका पाठ करते समय या धर्मोपदेश देते समय वायुकायिक जीवोंकी हिंसा हो तथा वायुकायिक जीवोंको हिसा होनेपर उनके अहिंसा महानत नहीं पल सकता इसलिये श्वेतांबरी लोग जो मुहपट्टी रखते हैं सो बयाके लिये हो रखते हैं। ऐसा मानना चाहिये।
समाधान-मुहपर पट्टो रखना दिगम्बर जैनधर्मके विरुद्ध है। महानती होकर वस्त्र रखना श्वेताम्ब। रियोंमें ही बतलाया है । दिगम्बर साधु तो चार अंगुल वस्त्र तो क्या तिल तुषमात्र भी परिग्रह वा वस्त्र नहीं रखते । क्योंकि वस्त्र रखनेवाले अनेक प्रकारके स्वाग बनाते हैं। नीतिसारमें लिखा है
दिगम्बरमते नैव नैव पटो दिगम्बरः।चतुरंगुलमानस्तु शस्यते वदनेष्वपि ।। ___ जो वस्त्र रखते हैं सो निगोबके पात्र हैं । सो हो षापाग्में लिखा हैजहि जाइरुवसरिसा तिलतुसमत्तं सुजेह अत्थेसु।जहि लेहि अप्प बहुगं तत्तो पुण जाइ णिगोय।।
यदि उस मुंहपट्टीको बयाके लिये कहोगे सो भी ठीक नहीं है। क्योंकि जब मुनियों के हिसा आविका सर्वथा त्याग है तब अपने आप होनेवाली हिंसाके स्वामी वे मनि नहीं होते जो हिंसा, मन, वचन, कायसे वा कृत, कारित, अनुमोवनासे की जाती है उसीसे वत भंग होता है। जो हिंसा स्वतः होती है उससे व्रत भंग नहीं होता। यवि एक महको बन्द करने के लिए पट्टी बांध लो तो फिर नाक आवि बाकीके नव द्वारोंको रोकनेका क्यों प्रबन्ध नहीं किया । उनके द्वारा जीवोंकी हिंसा क्यों होने दी। उसका भी प्रबन्ध करना चाहिये।
इसके सिवाय सबसे बड़ी बात यह है कि उस पट्टीपर मुहके उच्छाससे तथा मुंहको लार व यूक, 1 आविके सम्बन्धसे, पसीनासे अनेक प्रकारके त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं तथा मरते रहते हैं सो महाव्रतो ऐसो ।