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पसागर ५०० ]
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की पूजनके समान स्नान कर स्वाध्याय करना चाहिये। यदि इस प्रकार स्नान करना किसीसे न बने तो । स्नान करनेवाले एक पुरुषको अलग रखना चाहिये वह शास्त्रजीके पन्ने उलटता रहे। जिसने स्नान नहीं किया।
है उसको शास्त्रजीका स्पर्श नहीं करने देना चाहिये । इसी प्रकार पूजाके द्रव्यको अग्निमें जला देना चाहिये।
मालो थ्यास आदिको देनेमें निर्माल्यका पाप लगता है और कुगति प्राप्त होती है। वह पाप अपनेको भी । लगता है। इसलिए किसीको नहीं देना चाहिये । इस प्रकार उन्होंने सबको बतलाया परन्तु यह रीति भी थोड़े।
ही दिन चलो। इसके सिवाय उन्होंने बतलाया कि गंधोदक लगाकर हाथ धोना चाहिये यदि जिन प्रतिमाके चरणों पर केशर, चन्दन आदि लगा हो तो वहाँके दर्शन वा बन्दना नहीं करनी चाहिये । तथा दूसरोंको भी दर्शन, बन्दना आदि न करनेका नियम दिलाना चाहिये । रात्रिमें जिन मतिके सामने वा जिनमन्दिरमें यत्नपूर्वक भी दीपक नहीं जलाना चाहिये । फल, पुष्पोंमें नारियल बदाम आदि की मिगी निकाल कर चड़ाना
चाहिये । अखण्ड फल नहीं चढ़ाना चाहिये । केशरको पूजामें लेना ही नहीं चाहिये। केवल चंदन घिस लेना । चाहिए। पुष्प चावलोंके बनाने चाहिए चावलोंको कसूम वा हरसिंगारके फूलोंसे रंग लेना चाहिए इत्यादि । बहुत-सी बाते विपरीत कल्पना की है। यदि इसकी कोई कारण पूछता है तो केशरमें अनेक दोष बसला देते हैं। कहते हैं केशर बनाने में रुधिरका संस्कार दिया जाता है। इससे केशर काममें लाना अयो कोई दुष्ट लोग खोटो केशर बनाते हैं उसमें भी रुधिरका संस्कार देते हैं। इस प्रकार बतलाकर दोष देते हैं।
इस प्रकार अपनी बुद्धि के बलसे दूसरोंको भ्रममें डाल देते हैं। इनके सिवाय और भी अनेक प्रकारको कल्पनाएँ। । अपने मनसे करते हैं। कोई अपने नामसे पंथ चलाता है। जैसे गुमानपंयोको आम्नाय है। इसे लोग छोटी । । सहेलोके भाई कहते हैं । इस प्रकार परस्पर पत्रोंके लेखोंसे तथा देखादेखी या क्रोध, मान, माया, लोभके वशसे बहुत-सी विरुद्ध बातोंका प्रचार किया है। इन्होंने अपने बनाये हुए भाषा वचनिकाके. शास्त्रों में अपने आम्नायको पुष्टिके वचन रखकर ऊपर लिखी बातोंका प्रचार किया है। मैनपुरोके एक घंशोधर नामके श्रावकने अपने उपदेशसे पूर्ववेश बुन्देलखण्ड आदि देशों में इसकी प्रवृत्ति की है । सो यह सब हुंडावसर्पिणोका दोष है। "
प्रश्न-ऊपर जो एकांत विपरीत आदि पांच प्रकारके मिथ्यात्व बसलाये हैं वे कबतक रहेंगे ? उत्तर-थे सब मिथ्यात्व पांचवें कालके अन्त तक रहेंगे। पांचवें कालके अन्तमें सब नष्ट हो जायेंगे।