Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 532
________________ पीसागर देशांतरोंमें फिरता हुआ बहुत दुखी हो रहा था कि इतनेमें हो दैवयोगसे उसको यह महाकाल नामका असुर मिल गया। महाकालने पर्वतसे कहा कि अब तू दुःख मत कर अब मैं तेरी सहायता करूंगा। पर्वतने कहा कि "क्या करूं तू कहे सो करूं" तब महाकाल नामके असुरने कहा कि तू किसी उपायसे राजा सगर और सुलसाको अग्निमें होम दे। इसके लिये चमत्कार सब मैं बतलाता रहूंगा। महाकालकी यह बात सुनकर पर्वतने होमके सब शास्त्र बनाये। उनमें अनेक प्रकारके यज्ञ करनेका विधान लिखा। पशमेष, नरमेध आदि कितने ही प्रकारके यज्ञ लिखे। उन सबका फल स्वर्ग बतलाया । अनेक प्रकारके पापोंका प्रायश्चित्त भी यज्ञ करना १ बतलाया। और बतलाया कि इसी यज्ञसे सब पाप दूर हो जाते हैं और करने करानेवाले सब स्वर्गमें जाते हैं। पज्ञका करनेवाला आचार्य, करानेवाला यजमान और यज्ञमें जो बफरे, भैंसे, घोड़े, मनुष्य आदि होमे जाते हैं । वे सब मरकर स्वर्ग जाते हैं । उसने उन शास्त्रों में यह भी लिखा कि "यज्ञमें वा होममें जो जीव घात होता है । उससे आचार्य या करानेवाले यजमानको उनको हिसाका पाप नहीं लगता। क्योंकि यज्ञमें मरे हुए सब जीब स्वर्ग जाते हैं ।" मंत्रसे मरना वा मारना पाप नहीं है । इसप्रकार पापोंका निरूपण करनेवाले अनेक शास्त्र । बनाये। उन सम शास्त्रोंका नाम वेद रक्खा । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद ऐसे अलग-अलग चार देव बनाये । इन सब शास्त्रोंको बनाकर और वह पर्वत स्वयं ब्राह्मण बनकर उस महाकालासुरको सहायतासे । संसारमें उन वेद शास्त्रोंका प्रचार करने लगा। उसने लोगोंको समझाया कि यह वेद आर्षवेद है, यह स्वयं सिद्ध है यह किसीने बनाया नहीं है । यह अपने आप प्रगट हुआ है। इसप्रकार कह-कह कर वह पर्वत लोगों को ठगने लगा। क्योंकि उसका अभिप्राय तो और ही कुछ था। उस पर्वत और कालासुरने यह उपाय सोचा कि वह कालासुर तो पहले किसी देशमें महामारी आदि अनेक प्रकारके उपद्रव करता था जिससे सब लोग बहुत ही दुखी होते थे। तब पर्वत वेदिया ब्राह्मण बनकर उसकी शांतिके लिये लोगोंको अनेक प्रकारके यज्ञ करनेका उपदेश देता था। जब वे लोग यज्ञ करते थे और अनेक पशुओंका होम करते थे तब वह कालासुर शांति कर देता था। उपद्रव करना बंद कर देता था । अनेक देशोंमें इस प्रकार करता हुआ वह पर्वत कालासुरके साथ राजा सगरके वेशमें पहुंचा। असुरने जाफर वहाँ। बहुतसा उपद्रव फैलाया । तब पर्वतने राजासे कहा कि तू शांति करना चाहता है तो यज्ञ कर । तब राजाने

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