Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 538
________________ वर्षासागर - ११७ ] हरिवंशपुराण में अट्ठाईसवें सर्गमें ऐसा ही लिखा है अनेकवर्णनोपेतं दिव्यरूपं गतोपमम् । नागदत्ताभियोग्येशो नागमैरावतं व्यधात् ॥ ५० ॥ तमैरावणमारूढः सहस्राक्षः तरां बभौ । उद्याचल मारुतो यथा भानुः खतेजसा ॥ ५१ ॥ द्वात्रिंशब्ददनान्यस्य सदक्षाणि भवन्ति हि । सिद्धान्तसार प्रदोषकके छठे अधिकारमें लिखा है अथेन्द्रस्यैरावतदन्तिनः किंचिद्वर्णनं करोमि । जम्बूद्वीपप्रमाणगं वृत्ताकारं शंखेन्दुकुन्दधवलं नानाभरणघंटा किंकिणीतारिका हेमकक्षादिभूषितं कामगं कामरूपधारिणं महोनतमैरावतगजेन्द्रं नागदत्ताभियोग्येशो वाहनामरो विकरोति । तस्य दंतिनः बहुवणविचित्रतानि रम्याणि द्वात्रिंशद्वदनानि संति । श्रीपार्श्वपुराण के अठारहवें सर्गमें लिखा है तमैरावतमारूढः सहस्राक्षो व्यमान्तराम् । उदयाचलमारूढो यथा भानुः स्वतेजसा ॥ १६ ॥ द्वात्रिंशब्ददनान्यस्य सद्दन्तानि भवन्ति च । इन सब प्रमाणोंसे बसीस मुख सिद्ध होते हैं। प्रश्न-रूपचन्द भाषा पंच मंगलको तुम काष्ठसंघका किस प्रमाणसे बतलाते हो उत्तर --- इसी पंख मंगलमें आगे चौथे मंगलमें समवशरणका वर्णन करते समय तीन गंधकुटी बतलाई उसके ऊपर भगवान के विराजमान होनेका सिंहासन बतलाया। तदनन्तर फिर उसके ऊपर एक कमल बतलाया । और फिर उसके ऊपर अन्तरिक्ष अधर ) भगवान् अरहन्तदेवका विराजमान बतलाया । जैसा कि उसमें लिखा है । यथा--- मध्यप्रदेश तीन मणिपीठ तहां बनी । गन्धकुटी सिंहासन कमल सुहावनी || तीन छत्र सिर शोभित त्रिभुवन मोहिये । अन्तरिक्ष कमलासन प्रभुतन सोहिये ॥ इस कथमसे काष्ठसंघका सिद्ध होता है। क्योंकि यह कथन मूलसंघका नहीं है। मूलसंघमें श्रीभवभ १

Loading...

Page Navigation
1 ... 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597