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उत्तर-जो महीना अधिक हो उसके व्रत-विधान आवि दूसरे महीनेमें करने चाहिये, पहिलेमें नहीं। सो
ही लिखा हैपासागर पस्मिन् संवत्सरे स्याता दौमासावधिको यदा। उत्तरे व्रतकार्याणि प्रथमे न कदाचन ॥ ! ५१६
अभिप्राय यह है कि कृष्णपक्षके व्रत पहले महीनेमें कर लेने चाहिये और शुक्लपक्षके व्रत दूसरे महीनेमें करने चाहिये । (पहले महीनेका शुक्लपक्ष और दूसरे महीनेका कृष्णपक्ष अधिक मास गिना जाता है)
२३२-चर्चा दोसो बत्तीसवीं प्रश्न-तीर्थरोंके कल्याणकोंमें इन्द्राविक चतुणिकायके देव मध्यलोफमें आते हैं। उनमें इन्द्रके हाथियोंकी सेनामें ऐरावत हाथी मुख्य बतलाया है और उसे एक लाख योजनका बतलाया है। सो वह एक लाख । योजन ऊँचा है या एक लाख योजनका उसका विस्तार है।
समाधान-ऐरावत हाथीका विस्तार एक लाख योजन है। उसकी ऊँचाई पच्चीस हजार योजन है। । सो ही आदिपुराणमें भगवानको केवलज्ञाम उत्पन्न होने के समय बाईसवें पर्वके ५२ श्लोकमें लिखा है। यथा
इति व्यावर्णितारोहपरिणाहचतुर्गुणम् । गजानीकेश्वरश्चक्रे महेरावतदन्तिनम् ।। प्रश्न-भावा मंगलमें उस हाथीके सौ मुंह बतलाये हैं। यथा-'योजन लक्ष गयन्द बबन सौ निरमये' सो क्या ठीक है
उत्तर-किसी आर्ष ग्रन्थमें तो सौ मुख बतलाये नहीं हैं केवल भाषाकारके बच्चन है तथा काष्ठसंघ आम्नायके वचन हैं । शास्त्रोंमें इस ऐरावत हापोके बत्तीस मुख तो लिखे हैं। सो हो आदिपुराण बाईसर्वे पर्वमें पचासवे इलोकमें भगवामके केवलज्ञानकी उत्पत्तिके समय लिखा है
तमैरावतमारूढः सहलाक्षोधुतत्तराम् । पद्माकर इवोत्फुल्लपंकजो गिरिमस्तके ॥५३॥ | द्वात्रिंशद्वदनान्यस्य प्रत्यास्यं च रदाष्टकम्। सरः प्रतिरदं तस्मिन्नब्जिन्येका सरः प्रति ॥५३॥
द्वात्रिंशत्प्रसवास्तस्यां तावत्प्रमितपत्रकाः। तेषु पत्तेषु देवानां नर्तक्यस्तत्प्रमाः पृथक् ॥५४॥ A लघु आरिपुराणमें भी बारहधे सर्गमें लिखा है। द्वात्रिंशब्ददनान्यस्य दन्तां अष्टौ मुखं प्रति। प्रतिदन्तं सरश्चेकमब्जिन्यैका सरः प्रति ॥१७ ।