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चर्चासागर [NE]
ब्राह्मण थे उन्होंने अपने नामसे बारह हजार प्रमाण एक वराहसंहिता बनाई। उसमें बहुत-सा गणित लिखा है और बहुत-सी जन्मपत्रियोंका स्वरूप लिखा । यह सब मिष्यारूप लिखा है। इनके सिवाय अनेक लोगोंने अपनी आजीविकाके लिए अनेक पुराण तथा अनेक कथाओंके शास्त्र लिखे हैं । उनमें अनेक प्रकारके विपरीत कथन लिखे हैं। वे केवल अपने पालन-पोषण करनेके लिए लिखे हैं और अपनी आजीविका बनाये रखनेके लिए उनको प्रसिद्ध किया है। इस प्रकार खोटे शास्त्रोंकी उत्पत्ति हुई है लो सब हंडावसर्पिणीकाल बोषसे हुई है । इस प्रकार ऊपर लिखे हुए एकांत, संज्ञाय, विनय, अज्ञान और विपरीत मिथ्यात्वकी उत्पति हुई है। इनके उत्तर, भेव तीनों तिरेसठ है ये तीन सौ तिरेसठ भेद अनादिकालसे चले आ रहे हैं। तथा नवीन रूपसे जो इनकी उत्पत्ति होती है इसलिये उनको सादि कहते हैं। इन्होंका नाम अगृहीत और गृहीत है । इन दोनोंसे अगृहीतसे गृहीतका फल बहुत बुरा होता है। जिस प्रकार किसी पुरुषके पीढ़ी-दर-पीढ़ीसे किसीका ऋण चला आ रहा है वह इतना दुःख नहीं देता जितना कि नवोन हालका लिया हुआ ऋण दुःख देता है। इसी प्रकार अनादि मिध्यात्व अगृहोत है । वह अनादिकालसे इस जीवके साथ लगा हुआ है तथा फिर भी यह जोव नवीन सादि ferureent वा गृहीत मिथ्यात्वको धारण करता है वह इसे अत्यन्त दुःख देता है। ऐसा जानकर पहले कहे हुए समस्त मिथ्यात्वों को छोड़कर भगवान अरहन्त देवके कहे हुए मोक्षमार्गका यथार्थ श्रद्धान करना चाहिये इसका ज्ञान और आचरण करना चाहिये। यही इस जीवके उद्धार करनेको समर्थ है। इसके सिवाय अन्य कोई धर्म जीवका उद्धार नहीं कर सकता ।
यह सामुद्रिक देवकी उत्पत्तिका कमन बृहद हरिवंश तथा बृहत्पद्मपुराण तथा द्वितीय बृहत्पद्मपुराणसे लेकर संक्षेपसे लिखा है । इनके सिवाय इस संसारमें और भी अनेक लोभी जीवोंने अपना द्रव्य उपार्जन करनेके लिए अनेक कुशास्त्रोंको रचना को है। ज्योतिष्क, वैद्यक, मंत्र, तंत्र, यंत्र, शृंगार, युद्ध, कोक आदि अनेक शास्त्रोंकी रचना को 1 तथा अनेक देवी-देवताओंकी मूर्ति बनाकर स्थापन की है उनके प्रसादको खाते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं यह सब उनका लोभ समझना चाहिये । वे लोग इसको धर्म बतलाते हैं सो सम मिया है ।
इनके सिवाय लोगोंने अनेक व्रत, उपवास, उत्सव आविके दिन स्थापन कर रक्खे हैं उनसे
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