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वर्षासागर
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जो होइ कुलिंगी कोई । निरमायल लेवे सोई। तिनको नहिं मानहु भाई। यह नूतन रीत चलाई ॥ १५ ॥ माली बाजे न बजा३। श्रावक ही बजावे गावें। रांध्यो निज नाज चढावो । थालोडी मत करवावो ॥१६॥ ताजी मन कोऊ काहीं। मति करहु दोहरे मांही। सुदि चौदस भादौं आई। वेदी चौगिरद लुगाई ॥ १७ ॥ कूटलका फेरा, लेहै । सोहू न करो भवि जो है। तिस पूजन श्री जिनराई । करते सुन करियो भाई ॥१८॥ रथजात्रा करह न कोई। जीवनिकी घात सु होई। नहि सवत दया अब तातें । यह वरजी ह हम यातें ॥ १६ ॥ सोवत हैं देवल माही। गोली ढालत हैं लुगाई। ग्रह दोऊ बात न कीजो। तजिके जगमें यश लीजो ॥ २० ॥ घर घर प्रतिमा ले जाहीं। रोगी रवि जोगी पाहीं। सोह हम तो अब त्यागी । तुमहूँ तजियो बडभागी ॥२१॥ जो देत आशिषा कोई । सोह त्यागो भवि लोई। निरमाल्य द्रव्य चढ़या सो। मन्त्रनि करके मु पढयोसो॥२२॥ भोजक जे घर ले जावें । सो पुरमें विकन उपावें। ए विधि सब ही गिन लीजो। इनमेंते घाट न कीजो ॥ २३ ॥ फनि और विधि है ये है। पहुंचारो भोजक लेहै । स्वाहाको पढयो जो कोई । निर्मायल विषसम होई ॥ २४ ॥
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