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सागर
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सोचकर बछड़े सहित गौके पूजने के नतका प्रपंच किया। बलवको लेकर वह देवको गोकुल गई और गायोंके । वनमें खेलते हुए नारायणको देखा । बहानेके लिए गोकी पूजा को और फिर देवकीने कृष्णका स्पर्ण किया। कृष्णका स्पर्श करते ही वह बहुत प्रसन्न हुई । अपना मनोरथ सिद्ध किया। उस समय महा-मोहके उदयसे देवकीके दोनों स्तनोंसे दूधको धारा स्वयमेव निकलने लगी। उस समय बलभद्रने सोचा कि यदि इन दोनोंका माता और पुत्रपना प्रगट हो जायगा तो दुष्ट कंस न जाने क्या अपराध करेगा। अतएव तूधका निशान मिटानेके लिए बलदेवने दूषका घड़ा उठाकर देवकीके ऊपर डाल दिया यर्थात वृधसे देवकीका अभिषेक कर दिया जिससे उसका सब शरीर वृषसे सफेव हो गया। तदनन्तर देवकीने श्रीकृष्ण यशोदाको सौंपे और आप बलभद्रके साथ मथुरा आयो । उस समयसे लेकर भेड़िया धसानकी तरह इस संसारमें स्त्रियां भावों कृष्णा द्वादशीके दिन बछड़े सहित गोको पूजा करतो हैं और इसको व्रत मानती हैं। यह कथा भी दोनों हरिवंशपुराणोंमें लिखी है । यथा-लघु हरिवंशपुराणमेंएकदा बलभद्रेण वर्ण्यमानं विचेष्टितं । तस्य मानुष्यमाकर्ण्य देवकी विस्मयं ययौ ॥७२॥ कृतोपवासव्याजेन सुतदर्शनहेतवे। वजं ययौ गोपगोपीजनगानविराजितम् ॥७३॥ तारघंटारवै रम्यैर्गोधनै राचितं क्वचित् । नानावृक्षगणेष्ट्वा सा सती प्रभूपगता ॥७॥ नंदगोपस्ततः सार्द्धमागत्य च यशोदया । ननाम देवकी भक्त्या पश्यंती गोकुले श्रियः॥७५ ततो यशोदयानीय क्रीडन्तं गोधनान्तरे। शिखिपिच्छकृतापिंडं वसानं पीतवाससी ॥७६॥ । सुवर्णकर्णाभरणं श्याम जनमनःप्रियम् । मृदुपाणिपदाम्भोजलीलाकृतनमस्कृतिम् ॥७॥
देवक्या मातुरुत्संगे तया निन्ये स्वगर्भजम् । आलुलोक चिरं दृष्ट्वा जननी मुमुदेतराम् ॥ तलोललोचनं बाल मृदुकोमलविग्रहम् । स्पृशन्ती निजहस्तेन मेने स्वजन्म सार्थकम् ।।७६ । अहो हो वंचितो वैरी मया कंसो दुराशयः। पुगिस्पर्शपीयर्ष अर्थेवास्वादि तस्किल ॥८॥
सा देवकी ततः प्राह वनेपि वसति तव । श्याध्या यशोदा या नित्यमीहशं पुत्रमीक्षसे॥१॥ ॥ इन्द्रः पुत्रविहीनोऽत्र राज्यलाभोपि नोचितः। तस्मात्त्वयासि वो नित्यं त्वदादेशपरायणैः॥ ।
ARRUPTION
चामरचनामामा-मानाचा