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। जलस्नान, व्रतस्नान और मन्त्रस्नान । इनमेसे गृहस्थोंके लिये जलस्नान बतलाया है तथा साधुओंको व्रतस्नान
और मन्त्रस्नान कहा है । सो ही लिखा है-- पासागर तिविहोवि होइ पहाणं तोयेण वदेण मंतसंजुत्तं । तोयेण गिहथाणं मंतेण वदेण साहणं ।। ३६० ] इस प्रकार अजिकाकी विधि है ।
१८८-चर्चा एकसौ अठासीवी प्रश्न-जैन मतके गृहस्थोंके सूतक पासकके विचारकी विधि क्या है ?
समाधान--सूतक दो प्रकार है । जो गृहस्थ के घर पुत्र-पुत्री आदिका जन्म हो तो बस दिनका सूतक है है यदि मरण हो सो बारह दिनका सूतक है। जिस घरमें वा जिस क्षेत्रमे प्रसूति हो उसका सूतक एक महीनेका
है। यह सूतक जिसके घर जन्म हो उसको लगता है। जो उसके गोत्र वाले हैं उनको पांच विनका सूतक लगता है।
यवि प्रसूतिमें ही बालकका मरण हो जाय तो अथवा देशान्तरमें किसोका मरण हो जाय या किसो । संग्राममें मरण हो जाय अथवा समाधिमरणसे प्राण छोड़े हों तो इन सबका सूतक एक दिनका है।
घोड़ी, गाय, भैंस, दासी आदिको प्रसूति यदि अपने घरमें वा आँगनमें हो तो उसका सूतक एक दिनका लगता है यदि गाय, भैंस आदिको प्रसूति घरमै न हो घरके बाहर किसो क्षेत्रमें वा बगीचेमें हो तो उसका सूतक नहीं लगता।
जिस गृहस्यके यहां पुत्रादिकका जन्म हुआ है उसको बारह दिन पीछे भगवान अरहन्त देयका अभिषेक, जिनपूजा और पात्रदान देना चाहिये तब उसको शुद्धि होती है । अन्यथा शुद्धि नहीं होती।
यदि दासी-दास घा कन्याको प्रसूति वा मरण अपने घर हो तो उस गृहस्पको तीन दिनका सूतक लगता है । वह प्रसूति या मरण अपने घर हुआ है इसलिये दोष लगता है।
यदि किसी गृहस्थ के स्त्रियोंके गर्भका स्राव हो जाय वा पात (गर्भपात ) हो जाय तो जितने महीनेका वह गर्भ हो उतने ही दिनका सूतक लगता है, इस प्रकार समुदाय रूपसे सूतकका वर्णन है उसमें भी थोड़ा